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स्कूलों में गाड़ी से फर्राटे भर रहे नाबालिग छात्र,कलेक्टर के आदेश के बाद भी नही जागे विद्यालय प्रबंधक

 

हर स्कूलों में यही हाल
शहडोल।

विनय मिश्रा …

वैसे तो भारतीय संविधान में वोट डालने से लेकर गाड़ी चलाने तक का अपना अलग कानून है फिर चाहे वह वयस्क मताधिकार हो या वयस्क वाहन अभियान(मोटर व्हीकल एक्ट),दोनों के लिए व्यवस्क होना अनिवार्य नही बल्कि कानूनी व्यवस्क होना अनिवार्य माना गया है पर संविधान की बातें सुनता कौन है और कानून का पालन भला कौन कहाँ तक कराए।
‘अंजुम रवहर’ की शायरी काफी चर्चित है… की जिनके
“आँगन में अमीरी का शजर (पेड़)लगता है उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है”
इसका मतलब ये की शासकीय विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के पास व्यवस्थाएं नही है और हैं भी तो शासन की तरफ से है जो सिर्फ खाना,ड्रेस और किताबें ही है अलग से गाड़ी,मोटर का प्रावधान नही है।
किन्तु निजी शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता की भला क्या मजबूरी है जो अपने 14,15,16 साल के बच्चो को मोटरसाइकिल की चाभी थमाई और भेज दिया स्कूल।
फिर वो बच्चे सड़को पर स्टंट करते हुए तो निकलते ही है विद्यालय में भी उनका एक अलग रुतबा और पोज होता है। कई बार इन्ही नाबालिग बच्चों से बड़ी घटनाएँ घट जाती है जिसके बाद पश्चाताप के अलावा कुछ नही रहता।विद्यालय प्रबंधन भी मौन होकर उनकी इन करतूतों को देखते रहते हैं करें क्या बच्चों से मोटी फीस जो मिलती है।
किन्तु प्रशासन अपने ही आदेश पर अमल नही करता या फिर कुछ दिन की सख्ती के बाद सब एक ही ढर्रे में बहने लगता है कहना मुनासिब होगा।
इस आँकड़े को शायद मैं क्या सम्बंधित विभाग भी बताने में असमर्थ होगा कि कलेक्टर के आदेश के बाद अब तक कितने विद्यालयो में निरीक्षण कर नाबालिग बच्चो के वाहन चलाने पर कार्यवाही हुई है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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