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उपन्यास मां – भाग 7- वो बातें

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

मिनी ने पति के साथ दवाइयां ली और माँ को ले कर घर आ गई। डॉक्टर की बातें मिनी के दिमाग में गूंजने लगी- “अब मां के पैर कभी ठीक नही होंगें।”

मिनी की स्थिति ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं। अब मिनी के कान में माँ की भी बातें गूंजने लगी । वो बातें जो मां उस दिन से कह रही थी, जिस दिन से मिनी माँ को लेकर आई थी। कभी माँ कहते-कहते भूल जाती तो फिर से उसी बात को दोहराने लगती।
कभी – कभी मिनी मां की बातों को सुनती तो उसे यकीन नही होता था। उसे लगता था, ऐसा नहीं हो सकता। मां को शायद ध्यान नही है, माँ कुछ भी कहे जा रही है। मिनी को हमेशा माँ की बात सुनकर ऐसा ही लगता था कि जो माँ कह रही है वो नहीं हो सकता। नही हो सकता। नही हो सकता…..।

आज मिनी के कॉलोनी में जब एम्बुलेंस आई तो मिनी के कॉलोनी वालों को पता चला कि मां आई हुई है और उनकी तबियत सही नही है इसलिए डॉक्टर के पास ले के जा रहे है।मिनी ने ठान लिया कि अब माँ की बातें वो ध्यान से सुनेगी और पता कर के रहेगी कि आखिर बॉल टूटा कैसे। सभी को खाना खिलाने के बाद मिनी मां के पास बैठी रही।
उसने माँ से पूछा माँ आखिर ये सब हुआ कैसे?
माँ ने बताया- “मिनी! मैं रास्ते में गिरी थी तब मुझे बेटा हॉस्पिटल ले के गया था। मैं बिस्तर पर रहती थी। मुझे बहुत गंदे बर्तन में पानी दिया जाता था। मुझसे पिया नही जाता था। मेरा पैर पूरी तरह ठीक नही हो पाया था। धीरे-धीरे मैं चलने लगी थी। एक दिन मुझसे रहा नही गया। मैं पानी की गगरी को धो रही थी कि वही पर फिर से गिर गई। फिर जो बिस्तर पर आई कि फिर उठ नही सकी।” मिनी ने पूछा- “फिर हॉस्पिटल नही ले के गए ?”
मां ने कहा- “मैं उठ ही नही पाती थी तो मुझे कैसे ले के जाते?”
मिनी ने पूछा- “फिर दवाई कैसे देते थे?”
माँ बोली- “जो दवाई पहले दिए थे वही खाती रही।”

मिनी ने पूछा- “आखिर आप इतने दिन पैरो को क्यों मोड़े रहे?” माँ ने बताया- “मुझे पैरों को मोड़े रहने से दर्द से आराम मिलता था।”
मिनी पूछती जा रही थी- “क्या किसी ने आकर कहा नहीं कि दिन भर एक ही स्थिति में कैसे रहती हो ?”

माँ कहने लगी-“कौन कहता ? बेटा आता तो मुझे खाने के लिए पूछता। वो तो मेरे नज़दीक आती नही थी। बेटा घर में नही रहता तो मुझे गालियां देती। कोसती। जब मैं बिस्तर में आ गयी तो मुझे बचा-खुचा बासी खाना, कभी फ्रिज का खाना लाकर रख देती। मैं जब धीरे-धीरे चलने लगी थी तब मेरे रास्ते में कभी पानी गिरा देती कभी तेल गिरा देती। जब बिस्तर में आ गयी तो उसने दुख देने की सारी सीमा पार कर दी । मेरे बालों को खिंचती कभी मुझे मारती। कभी मैं उससे ,मुझे जल्दी मार डालने की विनती करती तो वो कहती कि मैं तो तुम्हे तड़पा-तड़पा के मारुंगी, इतनी जल्दी इतनी आसानी से कैसे मारूंगी। दोनो मिलके मेरे बालों को भी काट दिए। धीरे-धीरे मेरी हालत खराब होने लगी। मुझे मच्छरदानी के अंदर रख दिए। किसी को मेरे पास आने नही देते थे। मैं किसी से कुछ कह नही सकती थी। सबको यही बताती थी कि इसकी उम्र 80 साल की हो गई है। अब कुछ दिन की मेहमान है।”

मिनी ने पूछा – “बेटा कुछ नही कहता था ?”
माँ ने कहा- “वो घर आता तो पूछता था। माँ कुछ खाये हो कि नही? वही तो सब करता था।”

मिनी तड़प उठी। उसने कहा- “आपको मैं अपना फोन नंबर दी थी। आप मुझसे बात क्यो नही किये ? किसी से भी मुझे फोन करने क्यों नही बोले?”

माँ कहने लगी- “मैं सबको कहती थी। फिर भी तुझसे बात नही हो पाई और तेरे नाम से भी मुझे “दिन भर बेटी-बेटी करती है” का ताना सुनना पड़ता था। धीरे-धीरे बदबू के कारण कोई मेरे कमरे में भी नही आता था। लोग मुझे कमरे के बाहर से ही देखकर चले जाते थे। कमरे में मच्छरदानी और अंधेरे के कारण किसी को कुछ दिखता भी नही था और बदबू के कारण कोई मेरे कमरे में आना भी नही चाहता था।”

ये वही बातें थी जिसे मिनी माँ से टुकड़े-टुकड़े में सुनती तो थी पर उसे यकीन नही होता था। मेरी मां के साथ कभी ऐसा भी हो सकता है इस बात की जरा भी आशंका मिनी को नही थी।
मां की बाते सुनकर मिनी का दिल बैठा जा रहा था। सर घूमने लगा था पर डॉक्टर से मिलने के बाद मिनी को इन बातों पर यकीन करना ही पड़ा क्योंकि दोबारा कोई एक्सरे नही लिया गया और कैल्शियम की दवाई के अलावा और कोई दवाई भी नही दी जाती थी मां को। दीवार से टकरा कर सर फोड़ लेने का मन हो रहा था मिनी को लग रहा था कही जाकर चीख-चीख कर रो ले परंतु उससे कोई फायदा होने वाला नही था……

क्रमशः

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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