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अवैध लकड़ियों के परिहवन में विभाग मौन..?

●बिना टीपी के अन्य राज्यों में पहुँच रही लकड़ियाँ

●सीमाक्षेत्रो में जारी है लकड़ियों का परिवहन

●वन बैरियरों में सुविधा शुल्क का जुगाड़

शहडोल सम्भाग..

विनय मिश्रा….

मप्र में उद्योगों की माँग व आपूर्ति के कारण यूकेलिप्टस जैसे पेड़ो और लकड़ियों की बाढ़ आई अकेले ओरियंट पेपर मिल ही सैकड़ो टन लकड़ी खरीदने का माद्दा रखती है और दर्जनों की तादाद में यहाँ बिखरे व्यापारी पेपरमील में लकड़ी बेचने का धंधा कर रहे हैं पर इस आय-व्यय के पीछे कितना बड़ा खेल हो रहा है इसमें न कभी वन विभाग हस्तक्षेप करता है और न ही सरकार की टैक्स में दबे पाँव सेंध लगाने वाले इन व्यापारियों के माथे में कोई सिकन आती।नीलगिरी के नाम पर जिस प्रकार लकड़ी का अवैध परिहवन हो रहा है उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विभाग की निचले स्तर के अधिकारियों के संरक्षण में उच्च अधिकारियों का आँख मूँदा जा रहा है

ठगे जा रहे किसान और गाँव में होता हैं मोलभाव..

लकड़ी के इस पूरे खेल में रसूखदार व्यापारियों की एक ऐसी साख बन गई है कि उनके दलाल न सिर्फ गाँव बल्कि जिले के कस्बों से लेकर दीगर जिले के सीमाक्षेत्रो में भी अपनी धमक बनाए हुए हैं ।आपको बता दें कि दलाल या व्यापारी द्वारा पहले किसानों के घरों में दबिश दी जाती है फिर उससे लकड़ी का सौदा होता है ये सौदा एक मुश्त कूते में करके किसान को उसके लागत मात्र से कुछ रुपये दिए जाते हैं और बिना वन विभाग के टीपी के बेखौफ इन्हें मप्र की सीमा से लगे बैरियरों में चंद सुविधा शुल्क देकर निकाला जाता है और अन्य राज्यों में इसे दोगुने तिगुने दामों में बेचा जा रहा है।

असफल साबित हो रहा वन विभाग…

जिले की सीमा से बाहर जाने वाली लकड़ियों में अवैध परिवहन रोकने में विभाग असफल साबित हो रहा है। प्रतिमाह सैकड़ों की संख्या में वाहन लकड़ी लेकर चौकी के सामने से गुजर रहे हैं। दीगर प्रदेशों से आने वाले वाहनों की टीपी (ट्रांजिट पास) न काटे जाने से शासन को लाखों का नुकसान हो रहा है। सूत्रों की मानें तो बाहर से आने वाले इन गाड़ियों के गिनती की टीपी काटी गई होंगी जिनका रिकार्ड विभाग के बडे अफसरों को खुद निगरानी में रखकर जाँच करना चाहिए।
आवागमन करने वाले वाहनों का लेखा-जोखा न होने से बड़े पैमाने पर होने वाली गड़बड़ी से इंकार नहीं किया जा रहा। मप्र में बाहर से आने वाले वाहनों की टीपी काटने का प्रावधान है लेकिन वनकर्मी सुविधा शुल्क लेकर वाहनों को जाने देते हैं। सूत्र बताते हैं कि टीपी काटते भी हैं तो अतिरिक्त रुपये वसूल किए जाते हैं।
वाहनों को रोकने के लिए बैरियर भी बनाया गया है और आधा दर्जन कर्मचारियों की तैनाती भी की गई है लेकिन एक या दो कर्मचारी ही उपस्थित रहते हैं। वाहनों को रोकने के लिए बनाए गए बैरियर की रस्सी सालों से नहीं खींची गई है। वन चौकी द्वारा अवैध परिवहन पर निगरानी न रखे जाने से क्षेत्र में लकड़ी माफियाओं की गतिविधियां चरम पर पहुंच गई हैं।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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