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आईजीएनटीयू में अंचल के छात्र हॉस्टल नहीं मिलने से परेशान

आदिवासी अंचल के बच्चों से ही निर्वासितों सा व्यौहार 

अनूपपुर।।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (आईजीएनटीयू)  अमरकंटक में अंचल के छात्रों को हॉस्टल सुविधा नहीं मिलने से छात्रों के साथ ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है। हाॅस्टल में सीट न मिलने की स्थिति में खासकर छात्राओं को पढ़ाई छोड़ने तक की नौबत आ जाती है, क्योंकि विश्वविद्यालय परिसर के बाहर रहने की कोई व्यवस्था नहीं।

मालुम हो कि इन दिनों छात्रों को हॉस्टल आबंटन की प्रकिया चल रही है। इसमें शहडोल संभाग के अनूपपुर व अन्य जिलों के साथ ही पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के छात्रों को हाॅस्टल आबंटित नहीं किया जा रहा है। सवाल तो यह भी है कि यह विश्व विद्यालय विश्व भर के छात्रों के लिए है और मप्र. और छग. के स्थानीय छात्राओं के लिए नहीं?

यदि स्थानीय छात्रों के लिए ऐसा कोई नियम है तो विश्वविद्यालय प्रबंधन प्रवेश प्रक्रियाओं के पहले यह प्रसारित क्यों नहीं कराता कि स्थानीय छात्र-छात्राओं के लिए हमारे पास हाॅस्टल की कोई सुविधा नहीं है जिसे अपनी व्यवस्था में पढ़ना हो वही प्रवेश ले वर्ना न ले!

छात्रावासों की सोशल ऑडिट की मांग 

वहीं विश्वविद्यालय में छात्र कार्यकर्ता रवि त्रिपाठी ने बताया कि यह समस्या कोई नई या सिर्फ इस वर्ष की समस्या नहीं है, बल्कि ऐसी समस्या हर वर्ष होती है, दर्जनों छात्र-छात्राएं विश्वविद्यालय परिसर से बाहर झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं क्योंकि यह पूरा आदिवासी अंचल है।

चर्चा रहती है कि पूर्व में कुछ अतिरिक्त छात्रावास निर्माण के फंड आए थें लेकिन छात्रावास बने नहीं जिसकी असलियत सोशल ऑडिट से ही सामने आ सकती है।

कोई छात्र यदि गड़बड़ियों और उपेक्षाओं के खिलाफ मुखर होकर आवाज़ उठाता है तो संलिप्त संबंधित लोग उसे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से प्रताणित या बहला के चुप कराने की योजना बनाने लगते हैं।

हाॅस्टल का गणित समझिए

विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं के लिए कुल चार हाॅस्टल है 2 लड़कियों के लिए 2 लड़कों के लिए न्यू बॉयज हॉस्टल और ओबीसी गर्ल्स हॉस्टल में 90-90कमरे हैं प्रत्येक कमरे में 5-5 सीटें हैं यानी दोने की अलग-अलग छात्र क्षमता 450,

वहीं रानी दुर्गावती गर्ल्स हॉस्टल और गुरु गोविंद सिंह बॉयज हॉस्टल में 250-250 कमरे हैं प्रत्येक कमरे में 3-3 सीट है यानी दोनों की अलग-अलग छात्र क्षमता 750 है।

पिछले वर्ष से रानी दुर्गावती गर्ल्स हॉस्टल और गुरु गोविंद सिंह बॉयज हॉस्टल में सभी कमरों में 3 की जगह 4-4 छात्रों को रख के व्यवस्था बनाई है, जगह पर्याप्त होने से छात्र-छात्राओं को इससे कोई दिक्कत नहीं।

वहीं हाॅस्टल शुल्क एसटी एससी छात्र-छात्राओं से सिर्फ 500 रुपए लिए जाते हैं जिसे पढ़ाई पूरी होने के बाद लौटा दिया जाता है। वहीं ओबीसी और जनरल वर्ग के छात्रों को हाॅस्टल का वार्षिक शुल्क 3250 रुपए और मेस का मासिक शुल्क 24 से 2500 रुपए दिया जाता है, वहीं कोविड के पहले मेस शुल्क 1700 रुपए था।

मेस-कैंटीन के संचालक में भी गड़बड़ झाला

इतने बड़े विश्वविद्यालय में मेस/कैंटीन की स्थितियां बीते कई वर्षों से अपडेट नहीं की गईं, पूरी दुनिया में खासकर भारत के सभी विश्वविद्यालयों में कोरोना के बाद स्थिति सामान्य हो गई लेकिन यहां किसी भी कार्य में कोरोना काल का बहाना बता के पल्ला झाड़ लिया जाता है। बीते अप्रैल मे ही गुरु गोविंद बालक छात्रावास में संचालित कैंटीन के भोजन की घटिया गुणवत्ता की शिकायत करते हुए छात्र थक गयें तो पत्रकारिता एवं जनसंचार के छात्र रवि त्रिपाठी सहित सभी छात्रों द्वारा संबंधित वार्डन नरेश सोनकर और मुख्य अधीक्षक नवीन शर्मा के सामने यह शर्त रखी गई कि आप दोनों अधीक्षक बारी-बारी से प्रतिदिन दोपहर या रात का भोजन हमारे साथ छात्रावास की कैंटीन में करें। लेकिन इस मांग पर दोनों अधीक्षक बगलें झांकने लगे थें।

कोरोना के बाद से फल-फूल रहा केटरिंग का धंधा

यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी की छात्रों के लिए मेस-कैंटीन की सुलभ और उचित शुल्क वाली व्यवस्था को लस्त कर दिया गया है ता कि विश्वविद्यालय परिसर में कुछ चहेतों का केंटरिग का धंधा दुरुस्त किया जा सके! छात्रों की मानें तो खुद विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी कुर्सी में बैठ के मनमाना संचालित कैंटीन की शुल्क वसूली का ध्यान रखते हैं, जिसकी फोटो भी छात्रों के पास हैं आखिर यह कथित दोहरी नौकरी क्यों?

फेसबुक से फुर्सत नहीं चीफ वार्डन को!

वहीं बीते सप्ताह से देखा जा रहा है कि पूर्व कुलपति टीवी कट्टीमनी ने कोई नई किताब लिखी है जिसमें इस विश्वविद्यालय के समय के अपने कुछ अनुभव कटाक्ष भाव में लिखे हैं जिससे विशेष तौर पर चीफ वार्डन नवीन शर्मा घिघियाएं हुएं हैं, आए दिन फेसबुक और ईमेल में “विश्वविद्यालय की द्वंद्व कथाएं” लिखते रहते हैं। छात्रों की मानें तो इतना गुणवत्ता पूर्ण समय यदि वें छात्रावास संबंधित दायित्वों के लिए देतें तो समस्याएं यूं सुरसा की तरह मुंह खोले न खड़ी होतीं?

अभिभावकों की मांग

इस पर अभिभावकों ने आदिवासी अंचल शहडोल संभाग और गौरेला पेंड्रा मरवाही के छात्रों को महत्व दिए जाने की मांग करते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री सहित जितने भी नेता, बाबा, मंत्री हेलीकॉप्टर से अमरकंटक आते हैं तब सभी विश्वविद्यालय परिसर में बने हेलीकॉप्टर का ही उपयोग करते हैं लेकिन छात्रों की समस्या पर जरा भी नहीं बोलते क्या बड़े जनप्रतिनिधियों के लिए विश्वविद्यालय सिर्फ हेलीपैड बन के रह गया है?

इनका कहना है।

विश्वविद्यालय प्रबंधन ने दूरी के आधार पर हॉस्टल आबंटित करने का निर्णय लिया है। इस कारण नजदीकी जिले के छात्रों को सुविधा नहीं मिल रहा है, फिर भी मैं छात्रावास अधीक्षक से चर्चा करता हुं इस संबंध में।

विजय दीक्षित

जनसंपर्क अधिकारी

(जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक मप्र)

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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