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विधायक का बहिष्कार तो सांसद का बुरा हाल, विपक्ष चल रहा कछुए की चाल

रोजगार, महंगाई और मूल सुविधाएं, सब हैं बेहाल मतदाताओं से आह्वान,अपना नेता ऐसा चुनें जो स्वहित नही परहित पर ध्यान दें 

भाजपा विकास पर्व का ढोल पीट रही तो कांग्रेस उनकी कमियाँ गिना रही हैं। दोनों के पास जनता के लिए बेहतर बैकअप नही। कांग्रेस से ऊब तो भाजपा अब जनता की मजबूरी हो चुकी है।

चुनाव आगामी कुछ ही माह में सम्पन्न होने वाला है भाजपा-कांग्रेस दोनों अपने अपने हथकंडे अपनाना शुरू कर दिए हैं। एक दूसरे से सुपीरियर निकलने की होड़ ने जनता की सप्रीम व्यवस्था को तंग हाल छोड़ दिया है। अगस्त दौरे में कांग्रेसी नेता राहुल गाँधी शहडोल आने वाले हैं खासकर शहडोल की उस धरातल पर जहां से उन्हें उनके ही विधायक ने धरातल दिखा दिया था।ऐसे में शहडोल के जमीनी नेताओ ने जमीन पर कितना पसीना बहाया है वहा तो चुनाव परिणाम ही तय करेगा।फिलहाल कांग्रेस से लोगों का मन ऊब गया है तो भाजपा मजबूरी फिर भी जरूरी है। अगर विपक्ष में बैठी सरकार पक्ष के मेन्युफेस्टो पर काम करेगी तो विपक्ष के पास स्वयं की कौन सी योजना है जो जनता को लुभा सके। खैर फ्री की रेबडी बांटने की स्कीम से बेहतर है दोनों सरकार बेरोजगारी, बेहतर स्वास्थ्य, उत्तम शिक्षा, सड़क, बिजली ,पानी, महंगी इन पर ध्यान दे तो शायद घर-घर जाकर विकास यात्रा और विकास होर्डिंग लगाने की आवश्यकता नही होगी।

इन मुद्दों पर सवाल अहम  इसलिए भी है कि, यह आम मतदाता की बुनियादी सुविधाएं है ।पक्ष अपने सफलता का चोंगा बजा रहा है तो विपक्ष भी वही राग आलापने पर दौड़ पड़ता है।

शहडोल सम्भाग।।

विनय मिश्रा….

शहडोल सम्भाग में 5-6 बड़े उद्योग हैं पर उनमें रोजागर में नियोजित लोगों की संख्या 5-6 हजार हो तो ये स्थानीय नेताओं की सफलता है। खैर हमे नही लगता कि ऐसा होगा फिर भी  रोजगार से तंग उस युवक की चर्चा कर लें जिसे भोपाल तक पैदल चलने के लिए विवश होना पड़ा।

शहडोल जिले की जनता अब अपने बुनियादी सुविधाओं के लिए स्थानीय नेताओं का बहिष्कार करना शुरू कर दी है।बेहतर है अब ऐसे युवा बेरोजगार भी स्थानीय नेताओं के वोट मांगने की प्रकिया का बहिष्कार करें ताकि इन्हें अपने मूल कर्तव्यों का आभास हो जाए।

बीते दिनों झीकबिजुरी में स्थानीय विधायक का बहिष्कार हो गया और वो भी ऐसे मौके पर जब वो विकास पर्व पर विकास की फुलझड़ियां बांटने गई थी।

सासंद, विधायकों का दायित्व है उनके यहां की जनता खुशहाल हो पर यहाँ तो बहिष्कार हो रहा है। रोजगार के इस मसले पर दोनों का बहिष्कार हो तो इसमें कोई अचम्भा नही। हलाकि स्थानीय कम्पनियों में रोजगार सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय विधायक से बात भी की गई किन्तु उन्होंने कहा कि निजी संस्थाने हमारी सुनती ही नही । मतलब ‘अपने ही सरकार में विधायक की कोई वैल्यू नही’ का वो पोस्टर जनता की अंधेरी आंखों में प्रकाश डालने का काम कर गया।

सासंद तो मानो नाम की है…

हम चंदिया निवासी भूपत द्विवेदी की खबरें पिछले एक माह से प्रकाशित कर रहे हैं पर मजाल है कि सांसद उस अखबार की कतरन पर निहार लें। यहाँ तक कि सांसद महोदया पिछले 2 वर्ष से पीड़ित पक्ष को न्याय नही दिला पाईं सिवाय डिब्बे भर आश्वासनों के। भूपत द्विवेदी मुह की बीमारी के कारण बोल नही पा रहे तो उनकी पत्नी पैर की विकलांगता को झेल रही हैं। कालरी के सीएमडी, जीएम, बॉबू ने पीड़ित परिवार की खुशहाली छीन ली है।परिवार कर्ज से डूब में गया है और सारे जेवरात और व्यापारियों के घरों में गिरवी पड़े हैं। किराना दुकानों और उधार देने वालों की मानों एक लम्बी कतार घर पर रोजाना आती है । अब तो पीड़ित भूपत द्विवेदी और उनकी पत्नी को मजबूरन सीएम हाउस का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है पर वहाँ दरवाजे में तैनात प्रहरी उन्हें सीएम से नही मिलने दे रहे हैं।जब स्थानीय प्रतिनिधि कानों में ठेप डाल लें और प्रदेश सरकार घरों में कुण्डी तो ऐसी सरकारों का बहिष्कार मतदाता या आम आदमी क्यों न करे।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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