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सामाजिक संगठन व राजनीतिक सक्रियता से नशाखोर युवाओं का भविष्य हो रहा चौपट।

अनूपपुर।। हिंसा और भय का रिश्ता एक अर्थ में परमपोषी रिश्ता है। दोनों एक-दूसरे को बढ़ाते हैं। हिंसा धारण होने से पहले अनूपपुर शहर के नशाखोर युवाओं और सामाजिक संगठन संचालको में घटित होता है। और वैसे भी हिंसा पर मनोवैज्ञानिक और तंत्रिक वैज्ञानिक (न्यूरोलॉजिकल) अध्ययनों से निष्कर्ष है कि मनुष्य में हिंसा करने का सामर्थ्य तो है, लेकिन यह उसका अंतर्जात स्वाभाव नहीं है। किसी-न-किसी प्रकार के ब्रम्ह कारण से उत्तेजित और सक्रिय होता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि समाज में हिंसा को उत्तेजित करने वाली परिस्थिति परिवेश न हो तो ऐसे समाज में हिंसा की न्यूनतम जगह होगी। कभी-कभी केवल वैयक्तिक स्तर पर उसके सामूहिक रूप लेने की सम्भावना शून्यवत होगी।

इस संदर्भ में आजकल सामान्यत: सोशल मीडिया को ऐसी सामूहिक हिंसा का जिम्मेदार बताया जाता है और उस पर नियंत्रण की मांग की जाती है। जो एक हद तक सही मानी जा सकती है। अपितु अनूपपुर शहर के युवाओं को हिंसक आचरण की ट्रेनिंग राजनीतिक पार्टियां एवं गाहे-बगाहे सामाजिक संगठन दे रहे हैं। और इस कतार में ऐसे युवा हैं जिन पर अभिभावक का नियंत्रण समाप्त हो चुका है। ऐसे युवा कोरेक्स, नाइट्राबेड टेन, इंजेक्शन, गांजा, सुलेक्शन आदि मेडिकल नशा करते हैं। तथा ऐसे युवाओं का उपयोग नगर के कुछ राजनीतिकार एवं सामाजिक संगठन के लोग कर रहे हैं, जिसका जबरदस्त प्रभाव समाज में निरंतर पड़ रहा है। ऐसे नशाखोर युवा अपने ही प्रवृत्ती के युवाओं का गिरोह बनाकर नगर के बसाहट में अड्डा बनाये हुए हैं। राजनीतिक व सामाजिक संगठन के संरक्षण में पलने वाले ऐसे हिंसक आचरण के युवाओं की ट्रेनिंग भी संभवतः होती होगी, जिसकी छानबीन पुलिस प्रशासन के वरिष्ठतम अधिकारियों को करना चाहिए।

अनूपपुर नगर के युवाओं में व्यवस्था के प्रति यह अविश्वास उसके भीतर और भय पैदा कर रहा है, जिसे वह अपने द्वारा किए जा रहे हिंसक आचरण को आत्मरक्षात्मक समझ कर मेडिकल नशे को अपने अंदर वैधता दे रहे हैं। और मौका मिलते ही किसी छोटी-सी घटना पर भी समूह में शामिल होकर, अंदर व्याप्त भय, असुरक्षा ग्रंथि हिंसक आचरण में तब्दील हो जाता है। फिर वह ज्यादातर क़ानून के दायरे में रह कर न बात कर सकता है और ना ही कार्य कर सकता है। फिर वह क़ानून इसलिए भी समूह के रूप में अपने हाथों में लेने लगता है क्योंकि उसे विश्वास नहीं है कि व्यवस्था अपराधी को दण्डित करेगी या समाज में अपराध नहीं होने देगा। और ऐसी अभिव्यक्ति कभी चुनाव के बहाने, कभी राजनीतिक कार्यक्रम के बहाने या फिर किसी बौद्धिक, कर्तव्यनिष्ठ के विरुद्ध विस्फोटक रूप धारण कर लेती है।
अनूपपुर की सामान्य जनता में आर्थिक असुरक्षा, बेरोजगारी, अल्परोजगार, आत्महत्याएँ, भूमण्डलीकरण, भूमि के मामले और मानव निरपेक्ष तकनीकी आदि समस्याएं हैं और उनके प्रति व्यवस्था की उदासीनता भी एक असुरक्षा बोध पैदा करती हैं जो अंततः किसी भी बहाने से विस्फोटक रूप धारण कर लेंगी। इसलिए अनूपपुर शहर में असल समस्या समाज के मन में बढ़ रहा विफलता बोध, असुरक्षा, व्यवस्था के प्रति अविश्वास आदि मुख्य कारण हैं। जो युवाओं को भीतर से हिंसक बना रहे हैं, जिसकी अभिव्यक्ति किसी भी बहाने से हो रही है। और इस सब का लाभ कुछ राजनीतिक पार्टियां, सामाजिक संगठन व बुद्धिजीवी तबका युवाओं के भीतर समाज-धर्म के नाम पर भय व असुरक्षा बोध भरकर उन्हें हिंसक बना रहे हैं। इसी सन्दर्भ में संरक्षक व्यक्ति बौद्धिक ताकतों के प्रति घृणा भी भर रहे हैं।
अतः इस गंभीर विषय पर जिला कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक को सूक्ष्म जाँच कर तबाह हो रहे घर व युवाओं के भविष्य को सुरक्षित करने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेनी चाहिए। और शहर में मेडिकल नशा पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाने और गांजा आदि नशे के खेप खपाने वालों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

-राजकमल पाण्डेय

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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