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कोतमा विधानसभा चुनाव : “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥”

कोतमा विधानसभा चुनाव : “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥”

काजल की कोठरी में रह कर भी बेदाग रहे मनोज अग्रवाल।

अनूपपुर/(कोतमा) “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥” अर्थात जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है, उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे ज़हरीले साँप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई ज़हरीला प्रभाव नहीं डाल पाते। और यह दोहा इन दिनो कोतमा विधानसभा के चुनावी समर में इसलिए भी चरितार्थ हो रहा है क्योंकि कांग्रेस से टिकट प्राप्त करने के लिए मनोज अग्रवाल के अतिरिक्त दो दावेदार और लाइन लगाए खड़े हुए हैं। जिसमें पहला नाम सुनील सराफ तो दूसरा नाम नागेंद्र नाथ सिंह का भी उझल रहा है। ऐसे में एक पार्टी में रह कर मनोज अग्रवाल अपनी उत्तम छवि के लिए स्थापित हैं। अपितु वर्ष 2018 में विधायक के टिकट से वंचित रहने का कारण भी मनोज अग्रवाल की सौम्यता है; जिसे सुनील सराफ भुनाते हुए 5 वर्ष में अपना हाथ झुलसा लिए हैं। वहीं नागेंद्र नाथ सिंह की बात की जाए, तो उनकी राजनीतिक जागरूकता और सक्रियता से न पत्रकारिता जगत अछूता है और ना ही कोतमा की राजनीतिक फिजा अंजान है। व इन दो राजनीतिक विभूतियों के बीच रहकर भी यानि काजल की कोठरी में रहकर भी मनोज अग्रवाल अब तक बेदाग रहे हैं। और अगर कांग्रेस वर्ष 2023 में पुनः पार्टी के अंतर्कलह का शिकार करके मनोज अग्रवाल के हिस्से का टिकट सुनील सराफ या नागेंद्र नाथ को देने हेतु उत्सुक है, तो सम्भवतः कोतमा विधानसभा का सीट कांग्रेस अपने हाथों से खोने के लिए स्वयं तत्पर होगी। इसके अतिरिक्त मनोज अग्रवाल के राजनीतिक कैरियर की बात करें तो वह एक ही बार यानि वर्ष 2013 में विजय हुए थे; तथा जय सिंह मरावी के बाद कोतमा की राजनीतिक अस्थिरता को संतुलन देने हेतु मनोज को विधायक के रूप में जनता ने चुना था। लेकिन इससे पहले कि मनोज अग्रवाल की अगुवाई में कोतमा की राजनीतिक स्थिरता का सिलसिला आगे बढ़ता इससे पहले मनोज अग्रवाल कोतमा की राजनीतिक टूटन-घुटन का शिकार होकर विधायक के टिकट से वंचित हो गए थे। और युवाओं की लहर ने मनोज के हिस्से पर सेंध लगा दिया था। हालांकि इसके बाद भी मनोज अग्रवाल ने अपना राजनीतिक संतुलन बरकरार रखा और कोतमा विधानसभा के 28 से 29 फीसदी गौंड और कोल जातियों से अपना तालमेल बनाए रखा। ऐसे में अगर अबकी कांग्रेस पार्टी के हाईकमान बिना जमीनी हकीकत खघाले टिकट पर उल्टेफर करती है, तो सम्भवतः कोतमा विधानसभा में कांग्रेस औँधे मुँह गिरेगी।

सुनील सराफ से रूष्ट हैं कई कांग्रेसी कार्यकर्ता
सूत्रों से मिली प्राप्त जानकारी के अनुसार सुनील सराफ के अत्याधिक जोशिलापन कोतमा विधानसभा में मुसीबत का सबब बना हुआ। तथा स्वास्थ्य व मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में सुनील सराफ अपने कार्यकाल में फिसड्डी साबित हुए हैं। तथा कोतमा की जनता और कांग्रेस कार्यकर्ता इस कारण से भी मुँह नहीं खोलते की कब कौन सा नया कांड कर दें जिस पर कांग्रेसी भी चिंता में डूबे रहते हैं। एक ओर जहाँ देश-प्रदेश में कांग्रेस सत्ता के लिए संघर्ष कर रही है, वहीं सुनील सराफ का निरंतर गैरजिम्मेदारन रवैया कहीं न कहीं कांग्रेस को सफाई देने के बजाय मुँह छुपाने के लिए छत ढूढ़ना पड़ता है। वहीं अगर नागेंद्र नाथ सिंह को देखा जाए, तो उनकी भी राजनीतिक सक्रियता कोतमा में कांग्रेस की जमीन बनाने में कारगर सिद्ध नहीं सकती है। तथा कांग्रेस का सत्ता में लौटने का संघर्ष और लम्बा हो जायेगा। इस संदर्भ पर कोतमा में कांग्रेस को राजनीतिक स्थिरता देने में एक व्यक्ति ही सक्षम मालूम होते हैं, और वो हैं मनोज अग्रवाल जिस पर पार्टी भी भरोसा टिकाए हुए होगी। लेकिन देखना यह शेष होगा कि प्रदेश व कोतमा विधानसभा की राजनीति फिजा मनोज अग्रवाल की राजनीतिक जागरूकता को सीधे हाथ लेती है या आड़े हाथ यह टिकट वितरण के बाद स्पष्ट हो जायेगा। तथा यह भी तय हो जायेगा कि मनोज अग्रवाल का कांग्रेस में कोई भविष्य बचा या नहीं या फिर कोतमा में कांग्रेसी तोड़मरोड़ की राजनीति कर मनोज अग्रवाल को मार्गदर्शक मंडल में भेजनें हेतु सफल साबित हो जाते हैं।

-राजकमल पाण्डेय

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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