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नही बनी बात तो रिसाय गए – ललन

विधायक का ख्वाब धरा का धरा ही रह गया              टिकेट न मिलने पर थाम लिया बीजेपी का दामन          अब कांग्रेस की लंका में नए विभीषण की धमक

शहडोल।।।

विनय मिश्रा की कलम से….

भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में हमारे देश के संविधान की खूबसूरती ने समूचे प्रान्त समेत हर समुदाय,धर्म को एक माला में पिरोने का एक उत्तम दस्तावेज है । इस संविधान ने भारत के प्रत्येक नागरिक को वयस्क मताधिकार से लेकर चुनाव लड़ने का अधिकार भी दिया है। इसी संविधान ने हमे किसी भी राजनैतिक संगठन के पसंद न आने पर दल-बदल करने का एक व्यवस्था भी दे रखा है।संविधान की इस दल-बदल की नीति ने नेताओं के लिए एक विकल्प तो दे रखा है पर उस मासूम जनता का क्या जिसने उसे अपने पार्टी का प्रत्याशी समझकर मतदान कर अपने आँखों मे बिठाया था। इस आस से की जीतने के बाद यह प्रतिनिधि हमारे बुनियादी असुविधाओं की मलिच्छी दूर को करेगा किन्तु चंद निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु यह जनता के विश्वास के साँथ खिलवाड़ कर कभी फूल छाप तो कभी हाँथ छाप का मुखौटा पहनकर फिर से अपनी राजनीतिक पैठ बनाते हैं और जनता के समक्ष वोट माँगने का दुस्साहस करते हैं।

वैसे तो 2018 से दल-बदल और तोड़ फोड़ की नीति जोर शोर से जारी है किन्तु इन दिनों तो यह चलन में आ गया है जिसने नाम पहचान दिया उसी के साँथ गद्दारी का यह चलन अब आम हो चुका है। जनता भी इनके इस मुखौटे पर ध्यान नही देती और इन्हें पुनः मतदान कर जीतने का एक मुकाम देती है किंतु आम जनता के लिए यह ध्यान देने योग्य बात है कि क्या उसका नेता पलटूराम होना चाहिए यानि कभी भी अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कहीं भी लुढ़क जाए।

खैर हमारे मुहावरों और लोकोक्तियों में ऐसे व्यक्ति को कई वाक्यांशों से नवाजा गया है। जैसे ‘बिना पेंदी का लोटा’ ‘धोबी का कुत्ता घर का न घाट का’, ‘घर का भेदी लंका ढाए, ऐसे तमाम शब्द हैं जो ऐसे लोगों कब लिए स्पेशल बने हैं।

घर में ही तैयार हुआ नया विभीषण

बीते दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जैतपुर के भटिया माता मंदिर से चुनावी ऐलान कर रहे थे तमाम तैनाती मौजूद थी उद्बोधन में उत्साह था तभी एक ‘बिना पेंदी का लोटा नेता’ पहुंचकर अपने टिकेट न मिलने पर निराश होकर भाजपा का चरण चुम्बन करने लगा और पार्टी के वर्षों की पहचान को चंद मिनट में खाक कर दिया। सवाल सदस्यता लेने की नही अपितु इनके मतदाताओ का समर्थन भी अब कांग्रेस की बजाय बीजेपी को मिलेगा जो कहीं न कहीं कांग्रेस की लंका में विभीषण का रोल अदा करेगी।

ललन के राजनीतिक आँकड़े…

ललन के राजनीतिक करियर की ओर गौर फरमाएं तो ललन सिंह सरपँच से शुरू होकर जनपद सदस्य,अध्यक्ष जिला पंचायत सदस्य जैसे चुनावों में कांग्रेस के चहेते बनकर अपने राजनीति को चमकाया यहाँ तक कि 2013 में इन्हें विधायक का दारोमदार भी दिया गया किन्तु भाजपा विपक्ष प्रत्याशी जयसिंह मरावी ने इन्हें 11000 वोटों के आसपास से धराशायी कर दिया और अब वही ललन सिंह भाजपा के शरणागत होकर भाजपा प्रत्याशी जयसिंह मरावी के प्रचार में अपना योगदान बनाएंगे। खैर ये तो जनता के नजरों की फेर है, कि जो व्यक्ति अपनी पार्टी का सगा न हुआ वह किसी अन्य पार्टी के लिए क्या योगदान देगा। 

ललन की मंशा टिकेट कन्फर्म होने से पूर्व ही विधायकी लड़ने की थी और मन मे एक लोलुप्ता था कि वह इस बार कांग्रेस प्रत्याशी बनकर विधायक का चुनाव लड़ेंगे किन्तु कांग्रेस ने उनके इस सपने को चकनाचूर कर दिया और ललन उस खयाली पुलाव से फिर बाहर आ गए जिससे उन्होंने बगावत का चोला ओढ़कर कांग्रेस के विपक्ष मतदान करने,करवाने का अहम फैसला लिया।

बहरहाल आप पाठक और श्रोता तय करें कि क्या ललन सिंह जैसे नेता किसी भी पार्टी के लिए सही हैं या नही ???

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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