दिव्यकीर्ति सम्पादक-दीपक पाण्डेय, समाचार सम्पादक-विनय मिश्रा, मप्र के सभी जिलों में सम्वाददाता की आवश्यकता है। हमसे जुडने के लिए सम्पर्क करें….. नम्बर-7000181525,7000189640 या लाग इन करें www.divyakirti.com ,
7k Network

होम

Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

निजी स्कूलों के प्रबंधक ही बने शिक्षा माफिया,पूजा स्टेशनरी में फिक्स है रेट

निजी स्कूल संचालक चुनिंदा दुकान से ही कोर्स-यूनिफॉर्म पूजा स्टेशनरी से लेने को कर रहे है मजबूर

बुढार।।

रोहित वर्मा-9131534570

शहडोल जिले के बुढार क्षेत्र अंतर्गत कॉलेज चौराहा में स्थित पूजा स्टेशनरी की दुकान की मनमानी इन दिनों चरम सीमा पार हो चुकी है पूजा स्टेशनरी के संचालक के द्वारा मनमाने तरीके से मनमाने रूप निजी स्कूलों के संचालक से सांठगांठ करके अपने दुकान से पुस्तक बेचने का काम गोरख धंधा शुरू किया है। पूजा स्टेशनरी के संचालक के द्वारा जिस प्रकार से काम किया जा रहा है उससे यह प्रतीत होता है कि *मध्य प्रदेश शासन के पुस्तक विनमय नियम 2002 को पलीता लगाने में अपनी भूमिका पूरी तरह से निभा रहे हैं दुकान में किसी भी प्रकार से रजिस्ट्रेशन जैसे संबंध नहीं है दुकान के संचालक को भलीभांति है अभी पता नहीं है कि पुस्तक की दुकान संचालित करते समय आने वाले ग्राहकों को बिल देना अनिवार्य होता है लेकिन संबंधित के द्वारा नाही बिल दिया जाता है उपभोक्ताओं को और चूना लगाने में अपनी भूमिका निभाते हैं निजी स्कूलों से इनके सहारघाट इस तरह हैं कि अपनी चाटुकारिता करते हुए सुबह-शाम उसी विद्यालय में दिखते हैं।

पूजा स्टेशनरी के सामने नतमस्तक निजी स्कूलों के संचालक की मनमानी के आगे पालक बेबस, 12 से 13 प्रतिशत बढ़ा दी फीस, निजी स्कूल संचालक चुनिंदा दुकान मतलब पूजा स्टेशनरी से ही कोर्स-यूनिफॉर्म लेने कर रहे मजबूर।

निजी स्कूल संचालकों की मनमानी और पालकों की परेशानी दूर नहीं हो पा रही है। कोरोना के दौरान ऑनलाइन क्लास के नाम पर अभिभावकों से पूरे साल भर की फीस वसूलने के मामले सामने आए थे और अब एक बार फिर से स्कूल संचालकों की मोनोपॉली ने अभिभावकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसके अलावा पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामोंं ने ट्रांसपोर्ट के खर्च में इजाफा भी कर दिया है। ऐसे में पालकों को अपने बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी में भर्ती कर रहे हैं। पिछले दो साल के आंकड़े बताते हैं कि किस तरह सरकारी स्कूलों में एडमिशन लेने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। बच्चों के पालकों की जेब ढीली ना हो, इसके लिए प्रशासन ने किताब व गणवेश खरीदी के लिए एक से अधिक दुकानों का विकल्प रखने के निर्देश दिए हैं, लेकिन यह निर्देश फिलहाल हवा में है। वहीं निजी स्कूलों में अतिरिक्त भार बढ़ाया गया है। इसके तहत कक्षावार 12 से 13 प्रतिशत तक फीस में बढ़ोतरी की है और स्कूल बसों के किराए में भी मनमानी बढ़ोतरी की जा रही है।

30 प्रतिशत हो जाती है बढ़ोतरी:-

उल्लेखनीय है कि निजी स्कूल में एनसीईआरटी की किताबों से ज्यादा प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों पर जोर दिया जाता है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ये किताबें भी उन्हीं दुकानों के पास मिलती हैं, जो स्कूल तय करता है। वहीं ऐसे में अगर पालक गलती से किसी ओर पब्लिकेशन की वही किताब या मिलते-जुलते पाठ्यक्रम की अन्य किताब ले आए तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। वहीं हर वर्ष किताबों के खर्च में भी 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जाती है, जो इस कमाई का बड़ा हिस्सा संबंधित स्कूलों में बतौर कमिशन भी पहुंचाया जाता है। इसके अलावा स्कूल की ओर से बताए गए पूजा स्टेशनरी दुकानदार के पास किताबों के लिए गए दामों का पक्का बिल भी देने से बचते है। दुकानदारों की ओर से प्रिंट रेट पर किताबें बेची जा रही है। कुल मिलाकर अभिभावकों पर निजी स्कूलों की मनमर्जी का बोझ बढ़ रहा है। वहीं बच्चों के भविश्य के आगे मजबूर अभिभावक भी शिकायत करने से कतराते हैं। इसलिए एनसीईआरटी की किताबों पर रुझान नहीं
बता दें कि एनसीईआरटी की किताबों को निजी स्कूल इसलिए दरकिनार करते हैं, क्योंकि उसमें उनको कोई कमिशन नहीं मिलता। बुक डिपो की ओर से थोक विक्रेता यानी एजेंट को मूल्य में 20 फीसदी की छूट के साथ किताबें उपलब्ध होती है। नियमानुसार थोक विक्रेता को 15 प्रतिशत की छूट के साथ किताबें फुटकर विक्रेताओं को उपलब्ध कराना पड़ता है।शासन के आदेश कागजों में सीमित निजी स्कूलों के संचालकों की मनमानी पर अंकुश लगाने में जिला प्रशासन ने निर्देश जारी किए है। जिले के सभी अशासकीय मान्यता प्राप्त विद्यालय को भी आदेशित किया है कि वे अपने विद्यालय में विद्यार्थियों के उपयोग आने वाली पुस्तकें, प्रकाशक का नाम सहित प्रत्येक कक्षा में ली जाने वाली विद्यालय शुल्क की सूची अनिवार्य रूप से जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में भेजते हए इस सूची को विद्यालय के सूचना पटल पर भी प्रदर्शित करे। साथ ही शाला गणवेश व पुस्तकें उपलब्ध कराने वाली कम से कम 5-5 दुकानों के नाम भी सूचना पटल पर प्रदर्शित करेंगे, जिससे पालक इच्छित जगह से गणवेश एवं निर्धारित पुस्तक क्रय कर सके।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

ये भी पढ़ें...

error: Content is protected !!