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सिस्टम और कॉर्पोरेटरों पे सवाल उठाता कलम,कलमवीर को जान से मारने की साजिश

 

 

 

पुलिस के हाँथ अब तक खाली
विनय मिश्रा…

भोपाल।।शहडोल

एक दौर था जब देश को आजाद कराने के लिए आंदोलन कारियों के साँथ-सांथ अखबार और आलोचको की आवश्यकता होती थी आपातकाल का एक वो दौर भी था जब अखबार के पन्नो को काले स्याही से रंग दिया गया था किन्तु तब के दौर मे पत्रकारिता और उसका सम्मान महफूज था | तब के दौर से लेकर आज के दौर मे काफी कुछ बदल गया टीवी चैनलों के एंकर या तो सरकार की शरण ले लिए या फिर वो चैनल खरीद लिए गए या जिसने अपना स्वभाव या शैली नही बदला वो जेल मे ठेल दिए गए |अखबार और पत्रकारो को लेकर सुप्रीम कोर्ट या न्ययपालिका भले ही सख्त हो किन्तु सरकार अभी भी उदासीन हैं और इस उदासीन रवैये का फायदा वर्तमान मे सरकार से जुड़े जयचंद उठा रहे हैं ,ये जयचंद सरकार के ही किसी न किसी हिस्से का अंग बनकर पत्रकारो की साख और उनके सम्मान को अपने तलवे तले रखते हैं |देश मे लाखों नौजवान पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे है जिनसे सरकार की दुकाने चलती है यानि उन्हे पत्रकारिता का वो पाठ पढ़ाया जा रहा है जहाँ सूचनाओं और खबरों का दम तोड़ा जाता है अब के दौर मे दो तरह के पत्रकार ही देश मे बचे है, एक तो सरकार और कारपोरेट का कीर्तन करने वाले और दूसरे वो जो इनकी खबर लेकर इनके आँखों मे खटकते हैं | जिसके कारण कोई जेल भेजा जा रहा है तो किसी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा तो किसी को किसी ट्रक या गाड़ी के तले रौंदा जा रहा है | बस आप अपना मुह बंद रखे और अपने कलम से समाज को जगाने का प्रयास मत करे और उन सत्ताधारियों और कारपोरेट जगत का भोपूँ बने रहें ताकि जनसाधारण की नजरों से सूचना और पड़ताल कम हों और चरणवन्दना ज्यादा |
ऐसा ही एक मामला शहडोल जिले मे देखने को मिला है जहाँ रसूख के आगे कई खबरनवीसों की न सिर्फ खबर दबी बल्कि सत्य,असत्य की तुला मे असत्य का पडला उठा हुआ दिखाई दे रहा है| हद तो तब हो गई जब एक पत्रकार पर जानलेवा हमला होता है और पूरा का पूरा पुलिस महकमा अब तक उन हमलावरों को ढूँढने मे नाकाम साबित हों रहा है |इस पूरे मसले पर क्या पक्ष क्या विपक्ष किसी ने अपनी आवाज बुलंद नही की |

यह है पूरा वाकया…

जिले की जनता को जागरूक करना पीड़ितो की समस्याओं को आला अधिकारियों के संज्ञान में लाना मीडिया का मूलतः कार्य है लेकिन पत्रकारो के सतत जागरूकता निष्पक्षता अब लोगों की आंख की किरकिरी बन गई, जिसके चलते अब आपराधिक पृष्ठभूमि और अवैध गतिविधियों को अंजाम देने वाले लोगों ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को खोखला करने पर आमादा है, दरअसल दो दशकों से शहडोल में भू-माफियाओ का बोलबाला है अवैध तरीके से जमीन की खरीद बिक्री का इस कदर खेला जा रहा खेल में ना जाने कितने लोगों को अपना घर बनाने का सपनों पर पानी फेर दिया है इस मामले में जिले के खोजीं खबरों के लिए प्रख्यात पत्रकार मोहम्मद मुनीर ने बड़ा प्रमाणित दस्तावेजों के आधार पर खुलासा किया कि माफियाओं का सिंडिकेट किस कदर हावी है शासकीय भूमि पर कब्जा कर रखा है तो कहीं पट्टे की भूमि पर जबरन निर्माण कार्य करा लिया जाता है ऐसे ही मामले में शिकायतकर्ता महिलाओं की शिकायत के आधार पर प्रकाशित खबरों और तहसीलदार एसडीएम और न्यायाधीश का खुलेआम उल्लंघन किया जाने की खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया था जिसका शीर्षक 3-3 मजिस्ट्रेट और न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देता भू-माफिया अभिषेक प्रकाशित किया
गया खबरों से तिलमिला उठा माफिया ने शहर की सबसे सुरक्षित कहे जाने वाले पांडवनगर में सुरक्षा में सेंध लगा 15-16 लाठी डंडों और हथियार से लैस होकर कालोनी में घुसकर जान से मारने का प्रयास किया।
देर रात इस पूरी घटनाक्रम सीसीटीवी कैमरे में क़ैद हो गई है जिसमें देखा जा सकता है कि दुपहिया वाहनों में सवार होकर आए हथियार बंद लोगों ने पत्रकार मोहम्मद मुनीर पर प्राणघातक हमला कर दिया।
अब मामले में पुलिस प्रशासन साक्ष्य के आधार पर घटनाक्रम की जांच उपरांत कार्यवाही की बात कह रहीं हैं जबकि वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद मुनीर को इस बात की पूरी पुष्टि हो चुकी है कि हमलावरों को किसने भेजा था, जिसमे दुपहिया वाहनों के नंबर और उनके हुलिया से हो चुकी है। पत्रकार मोहम्मद मुनीर ने बताया है कि मामले के तार चुकी शहर के भू-माफियाओ से जुड़े हैं इस कारण इस मामले में नामजद रिपोर्ट के बावजूद पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के नाम पर ही एफआईआर दर्ज की।।
सीसीटीवी फुटेज और तथ्य प्रमाणित होने के बाद भी माँमले में पुलिस का हाँथ खाली होना कहीं न कहीं पुलिसिया नेटवर्क पर सवाल खड़े करता है।एक पुरानी कहावत है कि बिना पुलिस की जानकारी के मंदिर के बाहर से एक चप्पल भी चोरी नही हो सकता फिलहाल इस पूरे मामले पर मप्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कितना अमल करते हैं इस पर भी एक सवाल है। इस पूरे मसले को संजीदगी से देखा जाए तो यह सरकार के सिस्टम और कारपोरेटरों के रसूख पर कई सवाल नही बल्कि सीधे आरोप लगाता है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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