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मुहर्रम पर्व पर मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलूस,हजरत की कुर्बानी को किया याद

 

मुहर्रम पर्व पर मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलूस,हजरत की कुर्बानी को किया याद

कोयलांचल।।
इस्लाम धर्म में मुहर्रम को गम का महीना माना जाता है। इस दौरान इस्लाम धर्मावलंबी 10 दिन तक त्याग और तपस्या के साथ जीवन यापन करते हैं। और अंतिम दिन दिन ताजिया निकाला जाता है और बाद में ठंडा किया जाता है।
कोयलांचल नगरी बुढ़ार व धनपुरी में भी इस्लाम धर्मावलंबियों नें बुधवार को ताजिया के साथ जुलूस के साथ जुलूस निकाला। पहला जुलूस बुढ़ार के ईरानी बस्ती के मस्जिद से नमाज के बाद निकाला गया। जिसमें सैकडों लोग शामिल रहे। ईरानी बस्ती के मस्जिद से ताजिया के साथ जुलूस बुढ़ार के बाजार से होते हुये अमलाई चौराहे पहुंचा और नगर भ्रमण कर जुलूस ईरानी मोहल्ले के करबला में ठंडा करनें ले गये।

वहीं नगर के हुसैनी कमेटी द्वारा मनमोहक ताजिया के साथ सैकडों इस्लाम धर्मालंबियों नें मस्जिद के ‌नजदीक इमामबाड़ा लखेरन टोला से निकाला, और नगर भ्रमण करते हुये जुलूस अमलाई चौक पहुंचा जहां हिंद फर्नीचर मार्ट के संचालक समाजसेवी मो. इस्तियाक द्वारा आयोजित लंगर में सभी नें जलपान किया। इसके बाद कमेटी द्वारा ताजिया धनपुरी करबला ले जाया गया।

मुहर्रम मनाने के पीछे की वजह…

मुस्लिम धर्म के अनुसार, मुहर्रम का इतिहास 662 ईस्वी पूर्व का है। मुहर्रम के महीने में 10वें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने जीवन की कुर्बानी दे दी थी। इसी वजह से मुहर्रम महीने के 10वें दिन मुहर्रम मनाया जाता है।

क्यों निकालते हैं ताजिया…

मुहर्रम के दिन मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग ताजिया निकालते हैं। ताजिया को हजरत इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक माना जाता है और लोग शोक व्यक्त करते हैं। इसके अलावा इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। मुस्लिम धर्म के अनुसार, इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत इमाम हुसैन थे, उनके छोटे बेटे का नाम का हजरत मुहम्मद साहब था। कर्बला की जंग के दौरान उन्होंने इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार और कई लोगों के साथ शहादत दी थी। यह जंग हजरत इमाम हुसैन और इराक के कर्बला में यजीद की सेना की बीच हुई थी। इसी वजह से इस महीने को मुस्लिम धर्म के लोग शोक के रूप मनाते हैं। मुहर्रम के दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया निकाला जाता है।

मुहर्रम का क्या है महत्व…

बता दें, मुस्लिम रीति-रिवाजों से मुहर्रम को अलग माना जाता है, क्योंकि यह महीना शोक का होता है। मुहर्रम के दिन लोग इमाम हुसैन के पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं। ऐसा बताया जाता है कि हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसी कारण मुहर्रम के दिन शोक मनाया जाता है।

मोहर्रम पर्व में इन्होंने निभाई अपनी सहभागिता….

बीते बुधवार को मुहर्रम के इस पर्व पर हिन्द फर्नीचर संचालक मोहम्मद इस्तियाक खान, यास्मिन बैगम शिवम दुवेदी,मदन प्रजापति, गंगाराम पाठक,सौरभ पाठक, सरीफ भाईजान, सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थिति रहे।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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