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उपन्यास मां – भाग 3- डॉ. साहब

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

शाम को घर से निकले थे। एंबुलेंस पहले होम्योपैथी डॉक्टर की क्लीनिक पर रुकी। मिनी ने डॉक्टर साहब को एंबुलेंस के पास बुलाकर लाया। डॉक्टर साहब को मां के पैरों को दिखाया और मां की स्थिति बताई । डॉक्टर साहब ने जब मां के पैरों को देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। ये वही डॉक्टर साहब है जहां पिछले 10 वर्षों से मिनी मां के लिए दवाइयां लेती रहती थी। जब मिनी कॉलेज में थी तभी डॉक्टर साहब से पहली बार मुलाकात हुई थी । अब डॉक्टर साहब की बेटी का दर्जा मिनी को प्राप्त हो चुका था। नम आंखों से क्लीनिक के अंदर गए और मिनी को बुलाकर मां के लिए दवाइयां दी। बोले की दो-चार दिन के बाद बताना स्थिति कैसी है।

एंबुलेंस आगे बढ़ी दिसंबर का महीना था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी मिनी ने मां को देख-देख कर संतुष्टि पाई। कुछ दूर जाने के बाद ढोकला खरीदे जिसे मां आसानी से थोड़ा बहुत खा सके ।

एंबुलेंस धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी जिससे मां को कोई तकलीफ ना हो। मिनी के हाथों से मां ढोकला खा रही थी।

जब ब्रेकर आता था तो मां को थोड़ी तकलीफ होती थी, इस वजह से गाड़ी की गति धीमी थी। मिनी ने बेटे को फोन करके कहा- “बेटा! अपने कमरे में नानी के लिए एक बिस्तर बिछा के रखना। हम लोग नानी को लेकर आ रहे हैं ।” बेटे ने खुश होकर कहा -“हां मम्मी!

घर पहुंचते तक रात के 11:00 चुके थे। कॉलोनी के सभी घर बंद हो चुके थे। एंबुलेंस कॉलोनी में आई। बेटे ने द्वारा खोला। एंबुलेंस की पटरी जब बिस्तर के नीचे रखें तो बेटा देखकर अवाक हो गया। बोला- “ये क्या हो गया नानी को मम्मी ……..?”

मिनी खामोश रही। मां को बिस्तर पर लिटाए। एंबुलेंस चली गई। बेटे ने खाना भी बना कर रखा था। सभी फ्रेश होकर खाना खाए। मां बहुत खुश थी। मां को निगलने में थोड़ी परेशानी हो रही थी इसलिए एक कटोरी में दाल लेकर चम्मच से मिनी ने धीरे-धीरे मां को थोड़ी दाल पिलाई क्योंकि उसे पता था, दाल के पानी से मां को कुछ तो एनर्जी मिलेगी।

सारे लोग स्थिति परिस्थिति देखकर थके हुए थे। हालांकि मां को देखकर सभी की नींद उड़ी हुई थी फिर भी आराम तो करना ही था। कोई किसी से कुछ नहीं बोल पा रहा था। मिनी ने सभी से कहा- “आप लोग सो जाइए, मैं मां के पास हूं।

सभी सोने चले गए हालांकि नींद तो किसी के आंखों में नहीं थी। सभी गहरी चिंतन में चले गए थे कि आखिर जिस महिला को उन्होंने एक बहुत ही खूबसूरत सेठानी के रूप में देखा था, उनकी ऐसी हालत आखिर हुई कैसे यह सोचकर सभी स्तब्ध थे।

मिनी मां के पास बैठी थी। मां की खुशी का ठिकाना नहीं था। वह एक साथ बहुत सारी बातें बोल जाना चाहती थी पर बोलते बोलते भूल जा रही थी। बीच-बीच में बोलती थी- “मिनी! मैं क्या कह रही थी, भूल गई।” मां की कुछ बातें मिनी समझ रही थी , कुछ बातें मिनी के भी समझ से परे थी फिर भी मिनी मां को दिलासा दे रही थी कि मैं आपके पास हूं मां अगर आपको कुछ भी लगे मुझे बताइएगा। अब आप सो जाइए । फिर भी कुछ-कुछ बोलते रहने के बाद मां को लगा अब मिनी को भी नींद आ रही होगी इसलिए यह कहकर की मिनी अब तुम भी सो जाओ मुझे भी नींद आ रही है , मां सोने का प्रयास करने लगी। मिनी ने मां के कमरे की लाइट बंद की। मां के कमरे के बाहर ही कमरे से लगी हुई सीढ़ी है, वहां जाकर बैठ गई फिर आंसुओं की इतनी बरसात हुई जिसको बयां नहीं किया जा सकता…………….. क्रमशः

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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