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उपन्यास मां – भाग 4- आंसू और स्कूल

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

आँसुओ की बरसात के साथ रात सीढ़ी पर बैठे-बैठे कब बीती पता ही नही चला। सुबह चिड़ियों की मीठी आवाज से आँखे खुली। मिनी उठकर घर के काम में लग गई। सुबह बच्चों को , पति को स्कूल भेजना रहता है तो उनके लिए खाना और टिफिन समय पर बनाना होता था। सभी को भेजकर जब माँ के पास आई, उसने मां को ध्यान से देखा। मां के शरीर पर इतनी झुर्रियां पड़ी हुई थी और उनमे सूखे हुए मैल। उसे लग रहा था अगर जोर से मां के शरीर को साफ करेगी तो खून न आ जाए। पैरों के घाव को देखकर छूने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसने गुनगुने पानी से माँ के हाथों को, चेहरे को कपड़े से पोछकर धीरे से साफ किया। अब माँ को खिलाये क्या। उसे सूझा। उसने दाल में रोटी को डुबाकर उसे मिक्सी में चलाकर माँ को कटोरी चम्मच से खिलाया। बस जरा-जरा सा माँ खाने लगी।

अब मिनी को भी स्कूल जाना था। उसने मां से कहा- “माँ ! मैं स्कूल से बीच में घर आऊंगी तब तक आपको अकेले रहना होगा।” माँ खुश होकर कहने लगी-“हाँ बेटा! मैं रह लुंगी।”
मिनी तैयार होकर मां को दवाइयां खिलाकर मां के बिस्तर के पास पानी रखकर जिससे मां को प्यास लगे तो मां पानी तो पी सके , घर में ताले डालकर स्कूल चली गई। मिनी ने 20 मिनिट के अवकाश में मैडम से इजाजत लेकर घर आ के मां को देखा। मां ने जैसे ही मिनी की आहट सुनी एकदम खुश। मिनी को थोड़ी राहत मिली। बस अब दिन ऐसे ही बीतते गए। मां के बेडसोल पर दवाइयां लगाना पट्टी करना। सब काम करने के बाद रात को सीढ़ियों पर बैठकर जी भर के रोना। कभी-कभी मिनी को लगता था अगर सच में माँ को कुछ हो गया तो लोग कहने से नहीं चूकेंगे कि मां को खुद ही मार डाली। बे रहम जमाने का खयाल करके मिनी की आखों से नींद जैसे गायब ही हो गए। एक दिन मिनी ने सोचा की आखिर कब तक मैं 20 मिनिट में ऐसे ही घर आती रहूंगी। क्यों न प्रिंसीपल मैम को सारी बातें बता दी जाए। पर जब भी बताने की कोशिश करती आंसू पहले गिरने लगते जिन्हें बड़ी मुश्किल से छुपा पाती।

एक दिन जब माँ के पास गई तो उसने देखा मां का पूरा बिस्तर खराब हो चुका है। तुरंत उसे डॉ. के पास जाकर दवाइयां लानी पड़ी। आखिर एक दिन उसने प्रिंसिपल मैंम के सामने आँसुओं की झड़ी के साथ पूरी बाते कह दी। मैडम प्रति दिन 20 मिनिट के अवकाश में घर जाने की इज़ाज़त ये कहकर दी कि कभी भी तुम शिकायत का कोई मौका नही दोगी। मिनी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया। 1 km पर यदि स्कूल नही होता तो वह क्या करती, कैसे करती। ऊपरवाले के घर में देर भले ही हो पर अंधेर नही होता……..

क्रमशः

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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