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12 वर्ष रहे ‘मौन’ , खड़े होकर की तपस्या; पंचतत्व में विलीन हुए बाबा सियाराम

 

मप्र।।

सोशल मीडिया से लेकर धर्म की दुनिया में चर्चित प्रसिद्ध तपस्वी संत सियाराम बाबा के देह त्यागने की चर्चा है. बाबा एकादशी बुधवार की सुबह मोक्ष को चले गए. मप्र में खरगोन जिला स्थित नर्मदा नदी के तट पर तेली भट्याण आश्रम के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया. हजारों-लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं के साथ बाबा को श्रद्धांजलि देने मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी बाबा के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे.
सियाराम बाबा ने भट्याण गांव में अपने आश्रम में बुधवार सुबह करीब 6.10 बजे अंतिम सांस ली. बाबा पिछले कुछ दिनों से बाबा बीमार थे और निमोनिया से पीड़ित थे.
आजीवन केवल एक लंगोटी में रहने वाले और मात्र 10 रुपये भेंट लेने वाले बाबा सियाराम पंचतत्व में विलीन हो गए। राम भक्ति के साथ नर्मदा घाट उत्थान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध रहे बाबा का 12 सालों के मौन के बाद अपने पहले 4 अक्षर बोलने के लिए बड़े लोकप्रिय हुए।
मौन साधना करने वाले और भगवान हनुमान जी के समर्पित अनुयायी सियाराम बाबा भक्तों से केवल 10 रुपये का दान ही स्वीकार करते थे. 10 रुपये से एक भी पैसा ज्यादा नहीं लेते थे. इन्हीं 10-10 रुपयों को जमा कर धनराशि का उपयोग नर्मदा घाटों के जीर्णोद्धार और धार्मिक संस्थानों समेत मंदिरों के विकास के लिए करते थे.
बाबा अपने गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव और रामचरितमानस के निरंतर पाठ के लिए जाने जाते थे. अपनी सादगी भरी जीवनशैली के लिए मशहूर बाबा बहुत कम कपड़े पहनते थे. सिर्फ एक लंगोट में ही रहते थे. वे अपना खाना खुद पकाते थे और अपने दैनिक कार्य खुद ही करते थे. बाबा ने 12 वर्ष तक एक अपने आश्रम में पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े रहकर और मौन होकर कठोर तपस्या की थी. इस दौरान सिर्फ नीम की पत्तियों और बिल्ब पत्रों का ही सेवन किया. जब मौन खुला तो उनके मुख से निकला- ‘सियाराम.’ तभी से बाबा को सियाराम बाबा कहा जाने लगा. उनका असली नाम किसी को नहीं पता.
कहते हैं बाबा की चाय की केतली से कभी चाय नही खत्म होती थी और बाबा बिना माचिस के दीपक जालते देते थे।
मुंबई से मप्र में संत बनने तक

गुजरात के काठियावाड़ में जन्मे बाबा अपने माता-पिता के साथ बचपन में मुंबई आ बसे थे. मैट्रिक तक की पढ़ाई मुंबई में ही हुई. परिवार में दो बहनें और एक भाई भी थे. 17 साल की उम्र में बाबा ने वैराग्य अपना लिया था. घर त्यागकर पांच साल तक भारत भ्रमण किया. 25 साल की उम्र में बाबा खरगोन जिले के कसरावद स्थित तेली भट्याण गांव पहुंचे थे. उस दिन की तारीख तो किसी को याद नहीं, मगर बाबा ने अपने सेवादारों को एकादशी का दिन बताया था. और अब एकादशी के दिन यानी 11 दिसंबर 2024 को ही बाबा संसार सागर से विदा होकर प्रभु के धाम चले गए

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Author: Divya Kirti

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