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हस्तिनापुर और उसका अंत

 

 

डेस्क…धर्म

जब भी महाभारत का जिक्र होता है, तब हस्तिनापुर का नाम अवश्य सुनने को मिलता है। यहां भरत वंशीय राजा भरत समेत उनके पुत्र और पौत्र शांतनु, भीष्म, धृतराष्ट्र, पांडु और युधिष्ठिर ने राज किया था।

जब कभी भी धर्म युद्ध और भगवत गीता जैसे विषयों पर चर्चा होती है तब तब महाभारत जैसे ग्रन्थों और युद्धों का जिक्र भी जरूर होता है। हिंदू धर्म में महाभारत एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें हस्तिनापुर के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। इसमें द्वापर युग की घटनाओं का भी वर्णन है। जब भी भाइयों के बीच झगड़ा होता है तब तब महाभारत की याद हर जुबाँ पर आ ही जाती है।सगे भाइयो के बीच 18 दिनों तक चलने वाली इस लंबी लड़ाई में महान योद्धाओं का योगदान रहा, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे। उनके ध्वज तले यह युद्ध लड़ा गया और अंत में धर्म की विजय हुई।
युद्ध में जीत के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। युधिष्ठिर शुरू से ही न्यायप्रिय व राजा के गुण रखने वाले एक अच्छे व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने राजपाठ संभालते हुए न्यायपूर्ण राज्य की स्थापना की। युद्ध के बाद हस्तिनापुर में लोगों ने शांति से अपने जीवन को व्यतीत किया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पांडवों के बाद हस्तिनापुर को चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने अधीन कर लिया। इसके बाद यहां पांडवों का साम्राज्य समाप्त हो गया और एक नए युग की शुरुआत हुई। जब चंद्रगुप्त मौर्य ने नया शासनकाल शुरू किया और एक नए साम्राज्य की स्थापना की। मौर्य वंश के शासनकाल में हस्तिनापुर समृद्धि के शिखर पर पहुंचा। सम्राट अशोक के समय यह व्यापार और संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका था।धीरे-धीरे मौर्य युग समाप्त हो गया और हस्तिनापुर अपने अस्तित्व को खो दिया।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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