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जिलाध्यक्ष का पद और भोपाल की दौड़, पार्ट-1

 

डेस्क…

“राजनीति”एक ऐसा शब्द है जिसमे कोई किसी का सगा नही कब कौन किस करवट बदल जाए इसे तय कर पाना आज तक अच्छे दिग्गजों के लिए मुनासिब नही हुआ।
इस पर साहित्यकार व फिल्म संगीतकार साहिर लुधियानवी की 1968 पर बनी एक फिल्म इज्जत पर सियासत और सियासी लोगों पर एक गीत याद आता है जिसमे उन्होंने लिखा है कि” क्या मिलिए क्या मिलिए,ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे,।
“क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने असली चेहरा छुपी रहे”।।

हकीकत तो यही है कि कब किसके चेहरे में कौन सा असलीपन और नकलीपन छिपा हो यह किसी कोई अंदेशा भी नही होता। जिले में मण्डल अध्यक्ष चयन के बाद कई असली- नकली चेहरों के नाम बेपर्दा हुए तो कुछ पर्दानशीन बनकर रह गए।मण्डल अध्यक्ष के कई पुराने व दावेदार नेता तो अब यहाँ से लेकर मुख्यालय की गलियों में गाने गाते फिर रहे हैं की “हमसे का भूल हुई जो ये सजा हमका मिली”और शिकायत का दौर थमने का नाम नही ले रहा है।
जिले के ब्यौहारी,सोहागपुर और बुढ़ार के मण्डल अध्यक्षों का नाम अभी तक पार्टी नॉमिनेट नही कर पाई मानो मण्डल अध्यक्ष न चुनना हो जैसे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का चयन होना है।खैर संगठन की भी अपनी मजबूरी है सब तो कार्यकर्ता हैं सबके मन को रखना है खासकर उनके मन को जरूर रखना है जो माननीय-सम्मानीय हैं।फिलहाल वर्तमान में जो मण्डल अध्यक्षो का चयन हुआ है उसका विरोध आज भी पार्टी कार्यकर्ताओं और दावेदारों के मन मे घर किया हुआ है जिसका रोष सोशल मीडिया में ट्रोल हो रहे पदाधिकारी व वायरल हो रहे आवदेन-निवेदन पत्र के द्वारा देखने को मिल रहा है।
संगठन आगे क्या करेगी यह तो हम नही जानते पर मप्र में कुछ ऐसे स्थान हैं जहाँ मण्डल अध्यक्षो के चयन  प्रकिया को निरस्त कर एक बार पुनः चयन प्रकिया होना है।
जिलाध्यक्ष का पद और भोपाल तक दौड़, तराजू में आँक रहे अपनी-अपनी कीमत…

सप्ताह भर के अंदर शहडोल जिले में जिलाध्यक्ष का नाम संगठन द्वारा घोषित हो जाएगा इसके लिए जिले से अलग-अलग दावेदार मुख्यालय की गलियों में दौड़ लगा रहे हैं तो कुछ वहीं कुंडली मारकर आशीर्वाद लेने के लिए बैठे हुए हैं।हम उन नामों पर अभी से फुलस्टाप तो नही लगा सकते और न ही हम किसी चेहरे को सामने रख उसे जिलाध्यक्ष का दावेदार मान रहे हैं इसका कारण यह भी है कि मण्डल अध्यक्ष के चयन में होने वाले खेला ने सियासत की इस पिच ऐसा बाउंसर डाला कि सीधे बाल हेड के ऊपर से निकल गई।इसका मतलब आप समझ गए होंगे इस पूरे मसले में सन्दर्भ-प्रसंग की जगह आपके लिए छोड़ देते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यालय की गलियों में जिन नामों को तरजीह दी जा रही है उनमें जिसकी कीमत जितनी ज्यादा होगी जिलाध्यक्ष वही होगा।
एक प्रतिष्ठित अखबार के आर्टिकल में हमने पढा है कि यदि सांसद-विधायक किसी दावेदार के लिए सिफारिश करते हैं तो उनके नाम उनके द्वारा लिखित रूप से दिया जाए इसके बाद तीन लोगों की पैनल डिसाइड करेगी कि जिलाध्यक्ष कौन होगा पर एक अंतिम तुरुप का इक्का यदि जिलाध्यक्ष रिपीट हुए तब तो सारी बिसात और दौड़ धरी की धरी रह जाएगी।
हलाकि अपने-अपने तरकश से सभी तीर छोड़ रहे हैं अब सिर्फ देखना यह है कि निशाना किसका सही था।
फिर भी एक आम चर्चा है कि मुख्यालय में लोग आशीर्वाद के साँथ-साँथ गाँधी का भी अहम रोल मान रहे हैं।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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