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छ्ग में पत्रकार को उतारा मौत के घाट,पत्रकारों के लिए सरकार कब तय करेगी अपनी जवाबदेही

 

…बीजापुर

(विनय मिश्रा की कलम से)

बीते कुछ वर्षों में हमने देखा कि भारत की पत्रकारिता और पत्रकार दोनों ही असुरक्षित असहज महसूस कर रहे हैं।कहीं अखबार बन्द हो रहे हैं कहीं चैनल बैन हो रहे हैं, बात इससे भी न बनी तो तरह-तरह की प्रताड़नाएँ देना,कभी पत्रकारों का गिरफ्तार होना,कहीं पत्रकारों की निर्मम हत्या होना, संविधान ने भले ही नागरिकों की अभिव्यक्ति व प्रेस की आजादी दी है पर समय-समय पर बदलने वाले सरकारों ने पत्रकारों के प्रति अपनी जवाबदेही आज तक तय नही की और न ही उनके प्रति कोई प्रतिबद्धता तय की।
सच, निष्पक्षता, जूनून’… एक पत्रकार से पूरा समाज और पत्रकारिता धर्म यही तीन चीजें मांगता है पर इसकी कीमत उसे कभी आपराधिक गतिविधियों से चुकाना पड़ता है तो कभी अपनी जान गंवाकर,
मीडिया की आजादी किस हद तक खतरे में है इसके संकेत पिछले कुछ वर्षो में मिले हैं। सूचनाओं से निपटने की आड़ में अधिनायकवादी शासकों ने दमनकारी कानूनी उपायों का सहारा लिया है। ऑनलाइन जानकारी को नियंत्रित करने के लिए नवीन तरीकों का उपयोग किया जा रहा है जिससे पत्रकारिता पर सरकारों का दबाब बना रहे। पत्रकार लगातार हिंसा के शिकार हो रहे हैं और उनकी मनचाहे ढंग से गुप्त निगरानी की जा रही है। पत्रकारों पर इन हमलों के लिए अक्सर कोई जवाबदेही नहीं होती है, जबकि पत्रकारों के खिलाफ पुलिस या सुरक्षा बलों के लोग या राजनेता षड्यंत्रपूर्वक हिंसा और दबाने का कार्य करते हैं।वर्तमान परिवेश में स्वतंत्र पत्रकारिता को गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पत्रकारिता के माध्यम से जीविका चलाने में मुश्किलें हो रही हैं क्योकि सत्ताधारी लोग कठिन क़ानूनों को जबरदस्ती थोप रहे हैं यही नही इस कतार में प्रशासन भी सत्ताधारियों की पैरवी में शामिल रहता है ।
बेहतर है कि अब इस लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को किसी सत्ताधारी और नौकरशाहों के हांथो में गिरवी रख अब इस पेशे को खत्म कर दिया जाए ताकि समाज मे सिर्फ डिक्टेटर जैसे लोग ही राज कर सके और लोकतंत्र न रहकर सिर्फ राजतन्त्र यानि राजशाही रहे।

बीते कुछ वर्षों में पत्रकारों और उन पर हुए अत्याचारों की एक सर्वे रिपोर्ट…

●पिछले 5 साल में दुनियाभर में 355 पत्रकार मारे गए

●पिछले 5 साल में भारत में 20 पत्रकारों की हत्या

●2018 में करीब 248 पत्रकारों को कैद किया गया

●भारत में 2014 से 2019 के बीच 11 पत्रकार गिरफ्तार किए गए

●भारत में 2009 से 2013 के बीच 22 पत्रकारों की हत्या हुई है

●कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में 248 पत्रकारों को कैद किया गया, 2020 में अब तक 64 पत्रकार लापता हुए
● भारत में 2014 से 2020 के बीच 27 पत्रकार मारे गए जबकि 2009 से 2013 के बीच 22 पत्रकारों की हत्या हुई

छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार है सरकार की पत्रकारों कर प्रति अपनी एक मोनोपल्ली है छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में एक पत्रकार की हत्या कर दी गई वह कई दिनों से लापता था पुलिस ने एक ठेकेदार के परिसर में सेप्टिक टैंक से पत्रकार का शव बरामद किया इस बात से सोशल मीडिया से लेकर अन्य प्लेटफार्मों में सभी पत्रकारों ने अपना भड़ास निकालना शुरू कर दिया है।

जानकारी के अनुसार एक जनवरी की रात से लापता 33 साल के पत्रकार मुकेश चंद्राकर का शव शुक्रवार शाम बीजापुर शहर के चट्टानपारा इलाके में एक ठेकेदार के परिसर में सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया. मुकेश चंद्राकर ‘बस्तर जंक्शन’ के नाम से यूट्यूब चैनल चलाते थे। वह एनडीटीवी से भी जुड़े हुए थे।
पुलिस ने जानकारी दी कि जिस परिसर से पत्रकार का शव बरामद किया गया वह परिसर ठेकेदार सुरेश चंद्राकर का है। बीजापुर निवासी पत्रकार मुकेश चंद्राकर एक जनवरी की रात से अपने घर से लापता थे. इसके बाद उनके बड़े भाई युकेश चंद्राकर ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. मुकेश चंद्राकर के लापता होने की सूचना मिलने के बाद पुलिस की एक टीम का गठन किया गया और उनकी खोज शुरू की गई. पत्रकार के के मोबाइल नंबर के लोकेशन के आधार पर पुलिस को जानकारी मिली कि मुकेश चंद्राकर ठेकेदार के परिसर में मौजूद थे. पुलिस ने इस मामले में कुछ लोगों को हिरासत में लिया है. इनसे पूछताछ की जा रही है।छ्ग
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या पर दुख जताया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर लिखा है, ”बीजापुर के युवा और समर्पित पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का समाचार मिला. खबर सुनकर दुखी हूं. यह हृदयविदारक घटना है. मुकेश जी का जाना पत्रकारिता जगत और समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति की तरह है. इस घटना के अपराधी को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा. अपराधियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. इसके निर्देश हमने दिए हैं.”।

यूनेस्को की रिपोर्ट…

पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए दंड से मुक्ति को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, यूनेस्को ने सभी राज्यों से पत्रकारों की हत्या के लिए दंड से मुक्ति को समाप्त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं पर काम करने का आह्वान किया है। यूनेस्को की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दंड से मुक्ति का स्तर अभी भी चौंकाने वाला उच्च है, जो 85% है, जो छह वर्षों में केवल 4 अंक कम है।

रिपोर्ट में चेतावनी जारी करते हुए कहा गया कि इन मामलों के सामने आने के बाद ऐसा लगता है कि पत्रकारों के लिए दुनिया में कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं है। यूनेस्को ने कहा कि की मारे गए लगभग आधे पत्रकारों को तब निशाना बनाया गया, जब वे ड्यूटी पर नहीं थे। कुछ को यात्रा के दौरान या दफ्तर से बाहर निकलते हुए पार्किंग वाली जगह पर मारा गया। वहीं, कुछ पत्रकारों पर अन्य सार्वजनिक स्थानों पर हमला किया गया। अन्य अनेक मीडियाकर्मियों की हत्या उनके घरों पर की गई।

यूनेस्को के महानिदेशक आरडे ओजले ने एक प्रतिष्ठित लेख में बताया कि 2022 और 2023 में, हर चार दिन में एक पत्रकार की हत्या सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि वह सच्चाई की खोज करने के लिए अपना महत्वपूर्ण काम कर रहा था। इनमें से ज़्यादातर मामलों में किसी को भी कभी जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा। मैं अपने सभी सदस्य देशों से यह सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयास करने का आह्वान करता हूँ कि ये अपराध कभी भी दण्डित न हों।पत्रकारों पर भविष्य में होने वाले हमलों को रोकने के लिए अपराधियों पर मुकदमा चलाना और उन्हें दोषी ठहराना एक प्रमुख उपाय है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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