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काले हीरे का काला खेल, अतीक के आगे सब हुए फेल

काले हीरे का काला खेल, अतीक के आगे सब हुए फेल
अनूपपुर।।
कोयले की बढ़ती माँग और उपयोग ने इसे एक मामूली काले पत्थर से काला हीरा बना दिया इस काले हीरे ने न सिर्फ आम आदमी के बीच अपना महत्व साबित किया बल्कि फिल्म जगत भी इससे अछूता न रह और इससे जुड़े दर्जनों ब्लॉकबस्टर फिल्में दे डाली
इस कोयले से जुड़े हादसों पर नजर डालें तो शायद मजदूर और मजदूरों के आँकड़े कम पड़ जाएँगे जो इसी काले पत्थर को निकालते समय कोयले की परतों में दबकर अवशेष बन जाते हैं।
1970 के दशक मे धनबाद की चासनाला कोयला खदान में हुए हादसे पर आधारित फिल्म काला पत्थर बनी थी। इस हादसे में 300 से अधिक मजदूर मारे गए थे। कोयले से होने वाले अकूत कमाई और धन लोगों को कोयले की ओर आकर्षित तो किया किन्तु इसमें दबे कुचले मजदूरों और दिहाडियो पर आज तक बात नही हुई।समय-समय पर इस काले हीरे की फिल्में बनती रही कोयला,गुंडे,तेलगू में बनी दसारा और हाल ही में बनी बालीवुड हिस्ट्री मेकर फिल्म “केजीएफ”शायद हिस्ट्री बना गई ।कैसे रॉकी भाई के एक मामूली आदमी से पूरा साम्राज्य खड़ा करता है और पैसे पावर के दम पर राज्य के मुख्यमंत्री तक से पंगा लेता है।ये कहानी सिर्फ फिल्मों तक सीमित नही है कैसे इस कारोबार से जुड़े पूँजीपति हो गए और उनका भी अपना एक साम्राज्य तैयार हो जाता है।

केजीएफ की तर्ज पर पुष्पा-2 और 3…


बीते कुछ माहों से अनूपपुर में “केजीएफ” की तर्ज पर कोयले की बड़े-बड़े सुरंगे खोदी जा रही है। इस पूरे कारोबार को केजीएफ की तर्ज संचालित करने वाला जबलपुर का अतीक अपने राकी भाई (महमुदुल्लाह) के इशारे पर न सिर्फ स्थानीय थाने बल्कि पूरे अनूपपुर को कंट्रोल करने वाले पुलिस कप्तान को मैनेज करने का दम भरता है।इस मैनेजमेंट की कड़ी में एक सिपहसालार अरविंद भी ऐसे माफियाओं के नेटवर्क में अपनी भूमिका निभा रहा है।पुलिस कप्तान अगर बारी-बारी मोबाइल डीटेल और काल रिकॉर्ड खंगालें तो पता लग जाएगा का किस वर्दीधारी के किस माफिया से नेटवर्क हैं जिनसे ‘हेलो’ मात्र से काम होता है।पहले बिजुरी और अब बकही क्षेत्र में तालाब नुमा गड्ढे बनाकर कोयला निकालने का काम शुरू किया जा रहा है।स्थानीय थाने की इसमें क्या और कितनी भूमिका है यह तो कह नही सकते किन्तु आग लगने के बाद अगर पुलिस को धुआँ दिखाई नही दे रहा है इसका मतलब दाल में कुछ काला है।
हम केजीएफ के साँथ पुष्पा-2 का जिक्र इसलिए कर दिए कि पुष्पा-2 में कैसे एक कोल कारोबारी केंद्रीय मिनिस्टर बनता है और सारे अपराधों पर पॉलिटिकल कंट्रोल रखता है।इसका अर्थ है कि यही कारोबारी एक दिन इस काले हीरे से पैसा कमाकर एक दिन किसी पार्टी के नेता या एमएलए बन जाते हैं।
हम दावे के साँथ तो नही कह सकते कि अतीक भाऊ का अनूपपुर में किससे क्या नेटवर्क है पर कहीं न कहीं इस बड़े पैमाने के इलीगल काम को दिन के उजाले में करना पुलिस व अन्य जिम्मेदारों पर कोयले का कालिख जरूर लगा देती है फिर यूँ कहें कि कोयले के इस कारोबार में सबके हाँथ सने हैं।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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