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कफ सिरप कांड के बाद नया नियम… फिनिश्ड दवाओं में DEG और EG टेस्ट अनिवार्य

नई दिल्ली, 12 अक्टूबर 2025 — हाल ही में मध्य प्रदेश में कफ सिरप के सेवन से दर्जनों बच्चों की मृत्यु के मामले ने दवा सुरक्षा को लेकर देशभर में चिंता पैदा कर दी। इस हादसे के बाद केंद्र सरकार और दवा नियामक संस्थाओं ने सख्त कदम उठाते हुए एक नया नियम लागू किया है: अब सभी तैयार (finished) दवाओं में डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल (EG) के परीक्षण करना अनिवार्य होगा।

नीचे इस फैसले से जुड़ी मुख्य बातें और असर देखें:


🧪 नया नियम — क्या है बदलाव?

  1. DEG / EG का परीक्षण अनिवार्य करना
    पहले, दवा निर्माता केवल कच्चे माल (raw materials) — जैसे कि सॉल्वेंट्स, एक्ससिपियंट्स आदि — में DEG / EG परीक्षण करते थे। अब इस दायरे को बढ़ा कर फिनिश्ड दवाओं पर भी ये परीक्षण अनिवार्य कर दिया गया है।

  2. निर्माता और नियामक को निर्देश
    केंद्रीय दवा नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने राज्य ड्रग नियंत्रकों को निर्देश दिया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि दवा निर्माता हर बैच के कच्चे माल और तैयार उत्पाद दोनों का परीक्षण करें।

  3. नए दिशा-निर्देश और संशोधन
    भारतीय फ़ार्माकोपिया आयोग (Indian Pharmacopoeia Commission) ने अपने दिशानिर्देशों में संशोधन कर दिया है ताकि DEG / EG परीक्षण की यह नई जरूरत शामिल हो सके।

  4. मर्यादाएँ और नियंत्रण
    किसी दवा में DEG / EG की मात्रा निर्धारित नियंत्रित सीमा से अधिक नहीं हो सकती। यदि किसी दवा में ये विषाक्त रसायन पाए जाते हैं, तो वह दवा बाज़ार से वापस ली जाएगी।

  5. सख्ती और निगरानी बढ़ाना
    राज्य स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर दवा निर्माता इकाइयों की अनुपालन निगरानी और निरीक्षणों को तेज किया जाएगा। ऐसे निर्माता जो नए नियमों का उल्लंघन करेंगे, उन पर दण्डात्मक कार्रवाई हो सकती है।


⚠️ यह कदम क्यों जरूरी था?

  • हानिकारक अत्यधिक स्तर में DEG पाया गया
    मध्य प्रदेश के जांच रिपोर्ट में एक कफ सिरप में ~ 46.28% तक DEG की मात्रा पाई गई — जो वैज्ञानिक रूप से बेहद खतरनाक है।

  • नियमों की अनदेखी और मामलों का इतिहास
    मैन्युफैक्चरर्स ने कई बार नियमों का पालन नहीं किया — उदाहरण के लिए, हर बैच में परीक्षण करना उचित नहीं किया गया।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चेतावनी
    WHO ने भारत में DEG / EG परीक्षण की अनियमितताओं को “नियामक गैप” करार दिया और कहा है कि इस तरह की घटनाएँ सिर्फ बाल दवाओं तक ही सीमित नहीं रहें।

  • भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने की कोशिश
    यह बदलाव यह सुनिश्चित करने का प्रयास है कि दवा की गुणवत्ता की चेकिंग पूरी प्रक्रिया में हो — शुरुआत से लेकर बाजार में पहुँचने तक।


🔍 चुनौतियाँ और आगे का रास्ता

  • लैब सुविधा और संसाधन
    देशभर में ऐसी प्रयोगशालाएँ होनी चाहिए जो DEG / EG परीक्षण कर सकें। सभी छोटे और मझोले निर्माता इस परीक्षण के संसाधन नहीं जुटा पाएंगे।

  • नियामक क्षमता
    ड्रग निरीक्षकों और नियामक अधिकारियों को अधिक शक्ति, संसाधन और प्रशिक्षण देना होगा ताकि ये नियम प्रभावी रूप से लागू हो सकें।

  • सप्लाई चेन की पारदर्शिता
    कच्चे माल के स्रोत, उनके परीक्षण, और ट्रांसपोर्ट प्रबंधन सभी क्षेत्रों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना होगा ताकि संदिग्ध सामग्री दवा निर्माण में न प्रवेश कर सके।

  • कड़ी कार्रवाई और जवाबदेही
    नियमों का उल्लंघन करने वालों पर दंड, दवाओं की बाइपासिंग, लाइसेंस रद्दीकरण आदि कदम उठाए जाने चाहिए।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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