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चुप रहो! ‘बोलना मना है’,

#पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट को पढ़िए…

और तय कीजिए ये सही है या गलत…!

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला या पाबंदी? लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश!

सरकार आपको जेल भेजने, कानूनी एजेंसियों से डराने के अलावा अब आपको प्रदान की हुई अभिव्यक्ति पर भी ताला लगाने वाली है अब आप निर्बाध रूप से अपने विचार प्रकट नही कर सकते न ही बोल सकते, कारण सत्ता को गुलामी पसंद नागरिक चाहिए जो सिर्फ सरकार के हाँ पर हाँ मिलाए सरकार से सवाल करना सरकार की मानसिकता और उनको नागरिकों द्वारा मिले गए मताधिकारों का हनन सा है.. इसलिए न देखिए न सुनिए न बोलिए…!
देश में अब सवाल उठता है — क्या सच बोलना जुर्म हो गया है? पत्रकार, सोशल मीडिया यूज़र्स और आम नागरिक जब सत्ता की नाकामी पर सवाल उठाते हैं, तो उन पर कार्रवाई होती है, मुकदमे दर्ज किए जाते हैं, आवाज़ें दबाई जाती हैं।

लोकतंत्र की पहचान उसकी “अभिव्यक्ति की आज़ादी” से होती है, लेकिन आज वही आज़ादी सबसे बड़े खतरे में है। सत्ता को रास नहीं आता सच, और जो सच बोलता है, उसे “देशद्रोही” या “विरोधी” का तमगा दे दिया जाता है।

कलम चलाना अब आसान नहीं, क्योंकि हर शब्द पर पहरा है — हर पोस्ट पर डर है। सवाल यह है कि अगर जनता की आवाज़ को ही खामोश कर दिया गया, तो लोकतंत्र बचेगा कैसे?
● क्या ये लोकतंत्र की हत्या नहीं? क्या सरकार आलोचना से इतनी डरती है कि आवाज़ उठाने वालों को ही अपराधी बना रही है?

◆वक्त है तय करने का — सवाल पूछना अपराध है या अधिकार?

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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