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तो क्या सीएम सुनिश्चित करेंगे ढोलू में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार

सुनो! प्रमोद आप कम्पनी में भर्ती के क्या मापदंड तय किए हो

विधायक की बात भी नही सुनते स्थानीय ढोलू कंस्ट्रक्शन के प्रबन्धक

प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों ने रोजगार के लिए विधायक को लिया था आड़े हाँथ

यह हड़प और विलय नीति कब तक करती रहेंगी स्थानीय कम्पनियाँ

रोजगार की बात आए तो कई ऐसे नेता हैं जिनके पैरों तले जमीन खिसक जाती है शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार ये ऐसी व्यवस्थाएँ हैं जिन पर किसी भी सरकार की प्राथमिकता टिकी रहती है। इन पहलुओं पर ध्यान न देने वाले सरकार को हम विफलता की श्रेणी में रखें तो शायद कोई अचम्भा नही होगा।
हमने अंग्रेजों की हड़प नीति और विभाजन नीति दोनों पढ़ी है। पहले फुट डालो फिर हड़प कर शासन करो। जिले में एक अरसे से आई ढोलू कन्स्ट्रक्शन कम्पनी की नीति कोई अपनी नीति तो नही बल्कि अंग्रेजों की पालिसी से जरूर मिलती जुलती है।

शहडोल।।अनूपपुर

बीते कुछ वर्षों पहले शहडोल जिले के अमलाई ओसीएम अन्तर्गत ढोलू कन्स्ट्रक्शन कम्पनी को ओबी निकालने का कार्य मिला था इस दरमियान ढोलू का एक पड़ाव खत्म हुआ कि दूसरा पड़ाव फिर शुरू हो गया यानि अब ढोलू कंस्ट्रक्शन को एसईसीएल के नए प्रोजेक्ट रामपुर-बटुरा में ओबी निकालने का कार्य मिल गया यानी यह ढोलू के लिए डबल उपहार हो गया। किन्तु ढोलू कन्स्ट्रक्शन द्वारा अमलाई ओसीएम में 3-4 वर्ष काम करने के बाद वहाँ से लगे कई गांवों और क्षेत्र को बदहाल छोड़कर मानो खानाबदोश हो गए।

मुद्दे और विकास की बात

कारखानों और कम्पनी एक्ट में साफ-साफ प्रावधान है कि कोई भी निजी स्वामित्व की कम्पनी किसी स्थान पर उद्योग स्थापित करती है तो भूमि अधिग्रहण कानून, श्रम कानून , वहाँ के रहवासियों को नौकरी में सुनियोजित करने के अलावा कम्पनी के लाभांश में क्षेत्र विकास की सहभागिता अनिवार्य है किंतु ढोलू कंस्ट्रक्शन द्वारा क्षेत्र विकास की बात तो दूर यहाँ के कुशल मजदूरों को रोजगार मुहैया तक नही कराया जा रहा है।

नदी का प्रवाह अवरोध कर स्वयं के लाभ को प्राथमिकता

हमने ग्राउंड पड़ताल किया और कम्पनी के कार्यशैली का अवलोकन किया तो ज्ञात हुआ कि कम्पनी न सिर्फ पर्यावरण के नियमों की अनदेखी कर रही है अपितु पर्यावरण संरक्षण कानून के विरुद्ध कार्य कर पर्यावरण विनाश में भी कोताही बरत रही है । आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि बैरिहा से पड़रिया जाने वाले ग्राम के बीच कटना नदी थी जिसके जल प्रवाह को ढोलू कंस्ट्रक्शन द्वारा अवरुद्ध कर दिया है। बकायदे वहाँ स्थापित स्टॉप डैम्प इस बात के साक्ष्य हैं कि कभी इस डैम्प से किसानों के लिए खेती और पशु-पक्षियों के पीने के लिए जल उपयोग होता था।
हमारे संविधान ने भले ही आर्टिकल 48 में पर्यावरण संरक्षण और इसके दोहन के लिए कानून की दुहाई दी हो किन्तु ऐसे ईस्ट इंडिया कम्पनी जैसे व्यापारी इसे तोड़ने में किंचित मात्र भी फिक्र नही कर रहे है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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