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ग्राम पंचायतो की बाजार व्यवस्था पर सवाल??

 

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न शौचालय, न पानी न कचरा प्रबन्धन, वसूली जमकर
शहडोल।।
विनय मिश्रा…

जिले में जिला पंचायत अन्तर्गत 5 जनपद केंद्र हैं जिनमे हर जनपद पँचायत में अलग-अलग ग्राम पंचायतो का समूह है कुछ ग्राम पंचायतों को बाजार का केंद्र बना दिया जाता है ताकि सप्ताह में ग्रामीणों को आसानी से उनके घरेलू व रोजमर्रा की वस्तुएँ भी प्राप्त हो जाए और कईयों को बाजार लगाने के जरिए रोजगार भी मिल जाए।इस दिशा में सरकार की यह पहल सार्थक तो रही पर जिला,जनपद और ग्राम पंचायत के अधीनस्थ कर्मचारी, अधिकारी इसे धरातल पर पूर्णतः साकार करने में अक्षम नजर आ रहे हैं।ग्राम पंचायत में लगने वाले बाजारों की बकायदे बोली होती है उसमें निविदा के नियम शर्त होते हैं और एक निश्चित राशि पंचायत को देकर बाजार नियंत्रण का काम लेना होता है कई बार बोली शर्तों के अलावा नही होने पर बाजार व्यवस्था का बन्दोबस्त पँचायत ही करती है ऐसी दशा में पँचायत और ठेकेदार बाजार व्यवस्था का काम तो ले लेते हैं पर सुविधा के नाम पर महज शुल्क वसूलने के अलावा बाजार लगाने वालों को कुछ नही दिया जाता ।

सुविधा शून्य, शुल्क तेज

आपको बता दें कि जिले के जिन जनपद के ग्राम पंचायतों में बाजार हाट लग रहे हैं उनकी हालात आप देखकर भौचक्के हो जाएंगे कहीं बाजार लगाने के लिए कामगार या तो घरो से बोरी-पन्नी लेकर आते हैं तो कोई खुले आसमान के नीचे बाजार लगाता है कई बाजारों की स्थिति तो ऐसी है जैसे बाजार का सिर्फ वसूली होता है और चार-चार खूँटे और लकड़ी बाँधकर पूरा बाजार लगा लिया जाता है और सुविधा के नाम से व्यवस्था शून्य है।

न पानी,न शौचालय, न बैठक न कचरा फेंकने की व्यवस्था

बीते कुछ वर्षों पहले ग्राम पंचायतों में सार्वजनिक शौचालय बनवाने का सरकार ने एक अच्छा मुहिम जारी किया था सार्वजनिक शौचालय बने भी किन्तु मुख्यमार्गों और बाजार में बनने वाले शौचालय सिर्फ ताले तक सीमित हैं न उनका उचित रखरखाव किया जा रहा है और न ही उपयोग।बाजार लगाने की दिशा में पँचायत इस तरह का कोई भी सुविधा इन बाजार वालो को नही देती । ग्रामीण पांनी खुद लेकर आते हैं ,कचरा कहीं भी खुले में फेंककर बाजार में गंदगी के अलावा कुछ नही बचता।
यदि इसी का नाम बाजार व्यवस्था है तो बेहतर है सड़क में ठेला लगाकर वस्तुओं का क्रय-विक्रय हो जाए और वसूली भी बंद हो जाए।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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