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आओ ‘एक पेड़ मा’ के नाम लगाएँ ‘फोटो’ खिंचाएँ,

सोशल मीडिया में रील बनाएँ
शहडोल।।
विनय मिश्रा की कलम से

हमारा देश वृक्ष प्रधान देश है जहाँ आदिम सभ्यता का पोषण हुआ है या यूँ कहें कि आदि मानव के जीवन की शुरुआत इन्ही जंगलों की वृक्षों, टहनियों और झाड़ियों से हुआ है प्राथमिक कक्षाओं की किताबो को उठाइए तो पता चलेगा कि मनुष्य पहले चिंपैंजी, फिर गोरिल्ला और गोरिल्ला से मनुष्य हुआ यानी चार पैरों से चलने वाले मनुष्य ने पेड़ो की टहनियों को ही पकड़कर आभास किया था कि ये दो पैर उनके हाँथ बन सकते हैं सोंचिए प्रागैतिहासिक काल में एक अविकसित मानव को पेड़ो का महत्व समझ आ गया था किंतु विश्व गुरु कहलाने वाले आज के मानवों को पेडों और जंगलों का महत्व नही समझ आ रहा है।
हमारे देश में वृक्षारोपण के नाम से कई संस्थाएं काम करती है, जैसे पंचायती राज संस्थाएं, राज्य वन विभाग, पंजीकृत संस्था, कई समितियाँ कुछ संस्थाओं ने तो वृक्ष को गोद लेने की परंपरा भी कायम की है, शिक्षा के पाठ्यक्रम से लेकर टीवी ऐड,दीवारों में स्लोगन,चलचित्र के जरिए वृक्षारोपण को भी बढ़ावा व उनके महत्व को समझाया गया है पर आधुनिकता के इस दौर में अपने आपको साक्षर कहने वाला सभ्य समाज इसकी महत्ता को भूल बैठा है और खुद के विकास के लिए निरंतर जंगल और पेड़ों की कटाई जारी है।

माननीय-सम्मानीय और फोटोजीवी लोगों ने कितने पेड़ो का संरक्षण किया….

आमतौर पर इन दिनों पेड़ लगाने का ऐसा चलन हुआ है कि माननीय-सम्मानीय से लेकर पार्टी के फलाने-ढमाके नेताओ द्वारा आए दिन सेल्फी विथ पेड़ लगाने का अभियान चला रहे हैं सवाल है कि जितने लोगों ने जहाँ-जहाँ पेड़ लगाया उस पेड़ की वर्तमान स्थिति क्या है उन्हें कितना संरक्षित किया गया और लगाए गए पेड़ो की वर्तमान स्थिति और संख्या क्या है। यहाँ एक चीज जरूर समझ आ रहा है कि प्रसार से ज्यादा प्रचार किया जा रहा है यानि काम से ज्यादा दिखावे का ढोंग पीटा जा रहा है।हम ये बातें हवाबाजी में नही कर रहे हैं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है गत माह जून की भीषण गर्मी और उबाल, बीते 1 जून  से 16 जून तक बारिश से पूर्व जिले की ऐसी स्थिति हो गई थी मानो त्राहि माम मचा था हर व्यक्ति के मुह में बस एक रट था कि ‘उफ’ कितनी गर्मी है बारिश कब होगी??

कितना स्वच्छ है हमारा जिला..

शहडोल जिले और सम्भाग में स्थापित उद्योगों ने शहर को वो हश्र कर दिया है जिसका कोई अनुमान नही लगाया जा सकता माइंस,गैस,और कागज प्लांटों ने जिले की शुद्धता को ऐसे विदूषक बनाया है कि पर्यावरण का रंग बेरंग हो गया है स्थापित उद्योगों ने उद्योग लगाने के लिए पेड़ जरूर काटे किन्तु उसकी जगह अन्यत्र स्थान पर पेड़ लगाए नही गए।
बुढ़ार से शहडोल जाने वाले मार्ग पर जहाँ सैकड़ों की संख्या में पेड़ हुआ करते थे आज वहाँ सिवाय सड़क की तपन के कुछ नही!गर्मी से झुलसा पथिक आज इस मार्ग पर बैठने का ठौर नही ढूँढ़ पा रहा है दुकानों और काम्प्लेक्स की छांव में पानी ठंडा और नाश्ते का प्रबंध जरूर हो जाता है किंतु पेड़ की शीतलता और हवा नसीब नही होती।
गूगल सर्च करने पर पता चला कि शहडोल जिले में ‘हवा की शुद्धता’ (AQI)क्या है?
गूगल बाबा का कहना है कि शहडोल जिले की हवा इतनी शुद्ध नही है चेहरे पर मास्क या कवर जरूर पहनें क्योंकि यहाँ हवा की शुद्धता 50 µg/m3, है।

अब ऐसे में आप बताइए कि क्या सिर्फ एक पेड़ मा के नाम लगाने का सिर्फ प्रचार किया जाए या इसे संरक्षित करके इसका प्रसार किया जाए।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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