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महँगी शिक्षा, “महंगाई डायन खाए जात है” ‘एनसीआरटी की नियम सभी पर लागू’ पर नियमो का प्रोपेगैंडा

पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा का स्वप्न कैसे पूर्ण होगा
विनय मिश्रा….

शिक्षा विहीन मनुष्य की तुलना समाज से इतर की जाती है। मानव समाज के लिए शिक्षा किसी अमूल्य धातु जैसा है इसमें कोई अतिश्योक्ति नही। एक देश,प्रदेश व समाज विकास की ओर तभी अग्रसर हो सकता है जब वहाँ का आवाम साक्षर हो। शिक्षा के लिए हर इंसान हर जतन करता है यहाँ तक कि अपने रोजमर्रा की कमाई से तिनका-तिनका जोड़कर अपने बच्चो को उच्च शिक्षा दिलाने की कोशिश करते हैं पर आधुनिक शिक्षा महंगाई के बोझ तले धीरे-धीरे बाजारूकरण का रूप ले लिया है।

हर रोज नए विद्यालय खुलते हैं नए नियम निकलते हैं। हर निजी संस्थानों ने अपने अलग बायलॉज तैयार किया है किताबें फला दुकान से,ड्रेस ढका दुकान से,जूते ब्ला ब्ला….
एनसीआरटी नियमो की ओर रूख करें तो केंद्र से लेकर तमाम राज्यों में चलने वाले निजी संस्थानों के लिए एक फीस एक किताब मूल्य निर्धारित है किन्तु इस नियम में इतनी शिथिलता है कि कुकुरमुत्ते की तरह हजारों स्कूलों ने अपने अलग नार्म्स बना रखे है।

शहडोल।।
हम अपने जिले की शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो हर गली-मोहल्ले में कहीं किराए की दुकानों पर शिक्षा संस्थानें खुली हैं तो कहीं खुद पर,कइयों के पास तो स्कूल के पौमने भी पूर्ण नही हैं फिर भी धड़ल्ले से संचालित हैं ।

हमारे पास कुछ अभिभावकों ने अपनी व्यथा सुनाई की कुछ विद्यालय शिक्षा के इस महंगाई को चरम पर समेटे हैं। जहाँ शिक्षा से ज्यादा फीस पर फोकस किया जाता है।
हम इस शिक्षा पद्धति में कार्मेल और एमजीएम को अग्रणी श्रेणी में रखते हैं जिनके फीस तो आसमान छू रहे हैं बल्कि इनके कायदे भी सरकार के नियमों से विपरीत हैं।

एक फीस एक स्कूल क्यों नही…

अब हमारे देश मे स्टैंडर्ड के हिसाब से स्कूलें चलती है जिसमे ग्रेड डिसाइड हैं ए ,बी,सी,डी…

ए ग्रेड के बच्चे स्कूल सहित हॉस्टल व्यवस्था लेते हैं,

बी ग्रेड के बच्चे सिर्फ स्कूल में शिक्षा लेते हैं और स्कूल वाहनों की सेवा भी लेते हैं।

सी ग्रेड के बच्चे बामुश्किल फीस भरकर स्कूल जाते हैं और डी ग्रेड में सरकारी स्कूलों का स्थान है।

बड़ा ताज्जुब लगता है इस देश का चलन देखकर हमारे बच्चे पढ़ें तो प्राइवेट स्कूलों में पर उन्हें नौकरी शासकीय ही चाहिए।
जब एक देश के सभी प्रांतों में शिक्षा के एक ही नियम हैं तो अलग-अलग विद्यालयों में ऐसी विभिन्नता क्यों।

कार्मेल में एक अलग नियम…
हमारे पास बीते कुछ दिनों पहले कार्मेल कान्वेंट विद्यालय का एक अलग ही नियम आया जहाँ10वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बच्चियों के एडमिशन नही लिया जाता या उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाता है।

क्या यह प्रणाली सिर्फ कार्मेल में है,ऐसा क्यों??
10वीं पास उन सभी छात्राओं के साँथ उतनी ही समस्या होती है जितना एक शासकीय विद्यालय में पढ़े छात्र के साँथ हिंदी बोलने में जो समस्या होती है।

खैर शिक्षा की ऐसी व्यवस्थाओं पर अभिभावकों को
सवाल उठाने चाहिए और सरकार से पूंछना चाहिए कि हमारे देश के सभी प्रान्तों मे एक स्कूल एक नियम क्यों नही है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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