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धर्म की राजनीति पर टिकी भाजपा ,भगवान को आगे रख माँग रहे वोट

पार्टी के लिए रोड़ा बना कार्यकर्ताओं की आपसी फूट

बागी कार्यकर्ताओं से घर वापसी की आस

चुनाव में खलल डाल सकते हैं नाराज कार्यकर्ता

दिव्य कीर्ति शहडोल….

“राजनीति” नाम के स्वरूप इसका कार्य भी है पर इस नीति में कब कौन किस पाले में लुढ़क जाए कब कौन किसका हो जाए या फिर कब किसे किस पार्टी से बाहर कर दिया जाए आप इस बात का अंदाजा नही लगा सकते।

बीते 2 नवम्बर को देश की शीर्ष पार्टी भाजपा बगावत करने वाले उन कार्यकर्ताओं को घर वापसी का आमंत्रण दिया है यानि यह मान लिया जाए कि आपकी जरूरत हो तो आप पार्टी के लिए दरी, चटाई, बिछाते रहे और पार्टी का झण्डा उठाते रहें किन्तु जब कार्यकर्ताओं को पार्टी से विशेष पहचान या नाम की आवश्यकता हो तो कार्यकर्ताओं को पार्टी बाहर का रास्ता दिखा देती है।

निकाय चुनाव में बागी हुए थे वरिष्ठ व ईमानदार कार्यकर्ता

बीते वर्ष सम्पन्न निकाय चुनाव में भाजपा पार्टी ने जिन उम्मीदवारों या कार्यकर्ताओं को पार्टी में तरजीह नही दी थी उनमें से थोक भर कार्यकर्ता पार्टी से बगावत कर चुनाव में खुद का वर्चस्व स्थापित करने के लिए पार्टी से बगावत कर ली और परिणामस्वरूप पार्टी ने उनके वर्षों के तपस्या का फल उन्हें पार्टी से बाहर करने के रूप में दिया । अब जब जरूरत हुई तो पुनः उन्हें पार्टी में तरजीह दी गई है हमारे मुहावरों में पुरानी कहावत है कि- “वक्त पड़ने पर गधे को….वर्तमान विधानसभा चुनाव में सर्वे रिजल्ट भाजपा के विपरीत दिखाई पड़ रही है जिससे पार्टी बैकफुट पर नजर आ रही है।जिस कारण अब एकजुट होने का राग आलापा जा रहा है।

नही आती ऐसी नौबत

बीते निकाय चुनाव में विधायक अगर जनता की सुनते और संगठन में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को अहमियत दी जाती तो शायद अदला-बदली की आवश्यकता न पड़ती । 

परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टी अब असल में परिवारवादी हो चुकी है, पार्टी के ज़मीनी कार्यकर्ता केवल झंडा उठाने और नारे लगाने के लिए रह गये हैं।

सीटों की अदला बदली हो गई पर फिर भी मुश्किलें कम नहीं हुई है क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है , इसलिए अदला बदली करने के बाद भी भाजपा अब सिर्फ भगवान और मंदिर के भरोसे रह गई है ।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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