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दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा जरूर -राजकमल पाण्डेय

 

सरकार और आलोचना …

भोपाल।।
आलोचना एक शुद्धिकरण यज्ञ है, जो समृद्ध लोकतंत्र की मूल शर्त है। और ऐसा हम नहीं बल्कि मोदी जी कहते हैं लेकिन मंच और माइक छोड़ने के बाद मोदी जी ऐसे विचारों को स्वयं आत्मसात करना भूल जाते हैं। और उनके कार्यकर्त्ता तो यह कभी बर्दास्त ही नही कर सकते कि आलोचना शुद्धिकरण यज्ञ है, वह तो शब्दों के पीछे बिना लगाम के घोड़े के भांति बेहिसाब भागे जाते हैं। ऐसा कैसे कह दिया, क्यों कह दिया, तुम पाकिस्तान चलो जाओ, तुम हिन्दू विरोधी हो आदि आदि। या यूँ समझ लीजिए की देश पर अपनी सत्तावादी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी को सख्ती से ख़त्म किया जा रहा है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (World Press Freedom Index) में भारत 2021 में 142 से गिरकर 2022 में 180 देशों में 150 पर आ गया था। एवं 2023 में 180 देशो में गिरकर 161 पहुँच चुका है। आलोचकों के मुँह बंद कराने की कोशिशें एक नियमित मामला बन गई हैं; हर दूसरे दिन किसी का मुंह बंद किया जा रहा है। प्रतिबंध सिर्फ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर ही नहीं बल्कि पत्रकारों, कवियों, हास्य कलाकारों, आम नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवा बेरोजगार छात्र, छात्र नेताओं पर भी लगाए जाते हैं। आप ने अखबारों में पढ़ा होगा कि सितंबर 2020 में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार पर रिपोर्ट करने के लिए जा रहे पत्रकार को जेल भेज दिया गया था। बड़े महानगरों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस कदर खतरा है, तो आप सोचिए गाँव एवं क़स्बा के क्या हालात होते होंगे, जहाँ लोग अपने अधिकारों से वंचित हैं। वहीं कई रिपोर्ट पर मोदी जी यह भी दांवा करते हैं कि मोदी जी आलोचना को बहुत महत्व देते हैं आलोचकों को बहुत याद करते हैं? लेकिन इस पर हमारा मानना है कि इस कदर याद करते हैं आलोचको पर आफत बरस पडती हैं। वहीं मोदी जी कहते हैं कि आलोचना और आरोप में बड़ा अंतर होता है। प्रधानमंत्री पर आलोचना के मामले पर साहित्यकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि देश के 14 प्रधानमंत्री हुए लेकिन सबसे ज्यादा आलोचना प्रधानमंत्री मोदी की हुई क्यों? लेकिन नीलांजन मुखोपाध्याय जोकि Narendra Modi: The Man, the Times के लेखक हैं. उन्होंने कहा कि भारत में दो सबसे ज्यादा आइडियोलोजिकल रूटेड प्रधानमंत्री रहे हैं. पहले जवाहर लाल नेहरू और उसके बाद उतनी ही आइडियोलोजिकल कमिटमेंट से जो प्रधानमंत्री बने हैं वो नरेंद्र मोदी हैं. पर्सनल ट्रेड में सबसे ज्यादा सिमिलेरिटी मिलेंगी पीएम मोदी और इंदिरा गांधी में. और एक बड़ी विडंबना है कि भाजपा के दो पीएम हुए हैं. उनमें समानताएं कम हैं. वो चाहे टैक्टिकल हों, राजनीतिक हों या चाहे पर्सनल हों. पीएम मोदी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आइडियोलोजी के कमिटेड बिलीवर हैं. लेकिन इसके इतर बीजेपी अपने को नेहरू और इंद्रा के राजनीति से स्वयं से या तो दूरी बना लेते हैं या फिर नेहरू, इंद्रा के बीच स्वयं को मोदी जी बड़ा अंतर खड़ा करने के चक्कर में आलोचना की सीढ़ी बना कर चढ़ने के प्रयत्न करते हैं। देश के बड़े साहित्यविद, पत्रकार तथा सामाजिकविद बौद्धिक क्षमताओं से भरे हुए लोग यही मानते व कहते हैं कि जब देश की सबसे बुरी परिस्थिति तब नेहरू जी ने 34 करोड़ लोगों के नेता बने और उन्हें दल-दल से निकाल कर पैरो में खड़ा किया। जिसके बाद देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, फौलादी कारखाने, मिल, बाँध आदि निर्मित व स्थापित किए। और आज जिस मंच पर नेता खड़े होकर नेहरू की आलोचना कर स्वयं को सशक्त महसूस करते हैं उन आवाज पर साहस भरने वाले नेहरू थे। मोदी जी निसंदेह यह मानते हैं कि नेहरू जी से बेहतर प्रधानमंत्री बनने की कोशिश एक कल्पना मात्र है। अपितु आलोचनात्मक दृष्टिकोण पर खरा उतरना नेहरू विरोधी व समर्थको पर उत्साह भरना है।

हालांकि किसी पर भी सारे आरोप और आलोचना को किनारे लगाने का हथियार चुनाव है जो अब “दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा जरूर”

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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