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एक लम्बे अरसे के बाद सांसद आई:पार्ट-4

जब गूँज उठी चुनावी शहनाई

शहडोल सम्भाग।।

विनय मिश्रा की कलम से….

हम बीते दिनों पुष्पराजगढ़ क्षेत्र की ओर विचरण करने निकले इस आस में की विकास कहाँ खोया है जब धनपुरी अमरकंटक मार्ग पर चलना प्रारम्भ किए तो देखा कि अमलाई ओसीएम रोड में विकास गड्ढों में सोया है और दाँत चिहार रहा है और पूँछ रहा है पोस्टर,बैनर और सोशल साइट्स में विकास की माला जपने वाले लोग मैं तो गड्ढे में पड़ा हूँ और इस गड्ढे में रोजाना हजारों की तादाद में लोगो का आवागमन होता है। विकास कहने लगा कि इस क्षेत्र की सांसद मेरा उद्धार कब करेगी, क्या मै सिर्फ जुमलों तक ही सीमित रहूँगा। दूसरे शब्दों में कहें तो अमरकंटक- धिरौल-धनपुरी मार्ग की दुर्दशा आम जनता की नजरों से छिपा नही है यह एक बहुत छोटा नमूना है जो सांसद की कामयाबी को बयाँ करते हैं। अब जैसे ही हम किरर घाट की ओर चढ़े और वहाँ से लगे आसपास के आदिवासियों की स्थिति को देखे तो लगा कि विकास पगला गया है इसलिए तो सांसद का इतना प्रचार हो रहा है सड़कों की कनेक्टिविटी, रेलों का परिचालन,रोजगार,इग्नू यूनिवर्सिटी की शिक्षा,मेडिकल कालेज के नगाड़े पीटे जा रहे।

शायद विकास ने सांसद से नही पूंछा कि मैडम पुष्पराजगढ़ के लिए पिछले पांच 5 वर्ष में आपकी व्यक्तिगत उपलब्धि क्या रही है।

अब विकास जैसे ही मैडम के घर के गेट के दुआरे पहुँचा तो वही घिसा- पीटा बस अड्डा,वही सड़को पर सब्जी मंडी, खस्ताहाल सड़क, आदिवासियों के जीने के वही पुराने ढंग, सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना, नल-जल योजना का पानी पीने को आज भी आदिवासी बाहुल्य के लोग पीने को तरस रहे हैं ,जीवन-यापन के नाम पर सैकड़ो ऐसे लोगों को विकास ने जंगल मे लकड़ी काटते देखा और उनसे पूँछा कि जंगल की लकड़ी क्यों काट रहे हो,मजदूरों ने कहा कि मनरेगा में सरकार ने काम तो दिया है पर हमारे नाम की हाजिरी पंचायत और जनपद के कर्मचारियों द्वारा भरकर खा लिया जाता है हाँ कुछ दिन तक काम करते हैं तो उसमें भी साहब लोग हाजिरी और कमीशन का जुगाड़ लगाते हैं ऐसे में लकड़ी काटने में गैस का झंझट(उज्ज्वला योजना का टोटा) भी खत्म हो जाता है और इन्हें बेचने में मजदूरी भी मिल जाती है।

आगे विकास जैसे ही इग्नू यूनिवर्सिटी पर पहुंचा तो विकास भौचक्का रह गया वहाँ के छात्रों ने बताया कि शिक्षा के इस मंदिर में भयानक डकैती हो रही है यानी भोजन(मेस) का टेंडर लेने वाला ठेकेदार पैसा तो पूरा लेता है पर खाने में कीड़े-मकोड़े परोसता है शिकायत करने पर सफलता के नाम शून्य परोसा जाता है यही नही आदिवासी बाहुल्य इस यूनिवर्सिटी में छात्रों से मेस के पूरे महीने का पैसा ले लिया जाता है फिर चाहे छात्र पूरे महीने रहें या न रहें।

विकास तब तो अपने हाँथ-पाँव और बाल नोचने लगा जब उन छात्रों से रोजगार के अवसर पर बात की उन्होंने कहा कहाँ भैया यहाँ कहाँ रोजगार; राजेन्द्र ग्राम में क्या है??? खेती किसानी है.. थोड़ा बहुत उद्योग इंडस्ट्री आई भी तो वो राजेन्द्रग्राम से बाहर है, मोजरबेयर, रिलायंस, रेऊसा पवरप्लांट, अल्ट्राटेक, और छोटी-छोटी स्थानीय कम्पनियाँ है तो सांसदीय क्षेत्र में ही पर उनमें रोजगार कहाँ???

वहाँ तो बाहरी लोगों को ज्यादा प्राथमिकता मिलती है और जिसकी सिफारिश है वहाँ नियुक्त होता है।

अब तो विकास भलभलाने लगा और बोला इस बार सांसद मैडम को वोट नही दूँगा पिछली बार दिया था उसके बाद भी स्थिति जस की तस है क्या सिर्फ मोदी का चेहरा देखकर वोट डालें???

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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