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ये हैं भारत की पाँच रहस्यमयी स्थल,घूमने के शौकीन हैं तो जरूर जाएँ

डेस्क…. दिव्यकीर्ति

महाराष्ट्र स्थित महाबलेश्वर मंदिर से 300 मीटर की दूरी पर कृष्णाबाई मंदिर एक पुराना मंदिर है जो पुराने महाबलेश्वर में पंच गंगा मंदिर से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। यह प्रसिद्ध महाबलेश्वर पर्यटन स्थलों में से एक है ।
कृष्णाबाई मंदिर को कृष्णा नदी का स्रोत माना जाता है। मंदिर का निर्माण 1888 में रत्नागिरी के शासक द्वारा कृष्णा घाटी की ओर देखने वाली एक पहाड़ी की चोटी पर किया गया था। मंदिर में एक शिव लिंग और देवी कृष्ण की एक सुंदर मूर्ति है। यहाँ एक अद्भुत बात यह है कि गाय के मुख (गोमुख) से बहने वाली नदी की एक छोटी सी धारा एक तालाब में जाकर मिल जाती है जो कृष्णा नदी का स्रोत है। पत्थर के नक्काशीदार स्तंभ और छत इस मंदिर की विशेष विशेषताएं हैं।
यह मंदिर कृष्णा घाटी और आसपास के ग्रामीण इलाकों का मनमोहक दृश्य भी प्रस्तुत करता है। पंच गंगा मंदिर के पीछे, एक छोटा और अच्छी तरह से चिह्नित रास्ता है जो कृष्णाबाई मंदिर की ओर जाता है। यहां पर्यटक ज्यादा नहीं आते और अलग-थलग है, लेकिन यहां से कृष्णा नदी का सबसे सुंदर दृश्य दिखता है।
मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान कृष्ण की मूर्ति है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। यह मूर्ति काले पत्थर से बनी है और छह फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित भी हैं।

भारत ही नही विश्व का सबसे बड़ा बरगद का पेड़….

कोलकाता द आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डन में एक करीब 250 साल पुराना बरगद का पेड़ है. सन् 1787 में इस पेड़ को यहां स्थापित गया था. तब इसकी उम्र तकरीबन 20 साल थी. आज इसे दुनिया का सबसे विशालकाय बरगद के पेड़ के रूप में जाना जाता है. इस पेड़ की इतनी जड़ें और बड़ी-बड़ी शाखाएं हैं कि हर किसी को देखने में ऐसा लगता है जैसे वह किसी जंगल में आ गया हो. इसे देखकर ऐसा नहीं लगता है कि ये सिर्फ एक पेड़ है.पेड़ देखकर आपको ऐसा लगेगा कि यह पूरा जंगल है जबकि एक ही बरगद के पेड़ ने इसे जंगल का रूप दे रखा है यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।

 

व्यास गुफा और उसकी कहानियाँ….

उत्तराखण्ड के चामोली जिले के जोशीमठ से 3 किमी की दूरी पर भारत का पहला गांव ‘माणा’ स्थित है. जहां रहस्यों से भरी इस गुफा को ‘व्यास गुफा’ के नाम से जाना जाता है. वैसे तो गुफा का आकार छोटा है लेकिन इसके बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले महर्षि वेद व्यास ने गुफा में रहकर वेद पुराणों का संकलन किया था, जिसके बाद गुफा से वेदों का उच्चारण किया. जिस गुफा में भगवान गणेश ने महाकाव्य की रचना की थी.
गुफा की छत भी अनोखी होने के कारण देशभर में चर्चित है. छत को देखकर ऐसा लगता है, जैसे वेदव्यास के संकलन यानि गीता और महाभारत के बहुत से पन्नों को एक के ऊपर एक रखा गया हो.माना जाता है कि वेदव्यास और गणेश भगवान मिलकर यहाँ माहाभारत की रचना किए थे.

 

 

कमरूँगाग झील और पाताल लोक…

कमरुनाग झील, हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित इस झील तक पहुंचने के लिए पहाड़ियों के बीच रास्ता है। कमरूनाग झील के दृश्यों को देखकर सभी यात्रियों की थकान दूर हो जाती है। इस स्थान पर पत्थर से निर्मित कमरूनाग बाबा की प्रतिमा है। पौराणिक कथा के अनुसार झील, यक्षों के राजा के सम्मान में बनाई गई थी और इसका महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। पांडवों में से एक भीम ने इस झील का निर्माण किया था। माना जाता है कि यक्ष धरती पर विभिन्न स्थानों पर छिपे धन के आकाशीय संरक्षक हैं। इस विश्वास के आधार पर, लोग आज भी इस झील पर जाते रहते हैं और इसे यक्ष का निवास मानते हैं। मान्यता है कि इस झील में सोना और चांदी रुपये चढाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। स्थानीय लोग कमरुनाग देवता को वर्षा की अध्यक्षता करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं इसलिए, उन्हें प्रार्थनाओं की पेशकश करने के लिए झील के पास एक मंदिर बनाया गया है। कमरुनाग मंदिर की निकटता के कारण, प्राचीन झील का नाम इसके नाम पर रखा गया है कहते हैं इस झील के अंदर सीधे पाताल लोक का रास्ता का जहाँ यह खजाना इकट्ठा होता है।

 

धौलावीरा एक ऐतिहासिक स्थल…

धोलावीरा की अच्छी तरह से संरक्षित ये शहरी बस्ती, अपनी बेहद खास विशेषताओं वाले इस क्षेत्रीय केंद्र की एक जीवंत तस्वीर दरसाती है जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है
गुजरात के कच्छ का रण स्थित हड़प्पा कालीन स्थल धोलावीरा को यू​नेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.यह भारत का 40वां वर्ल्ड हेरिटेज है जीवन स्थलों में धोलावीरा का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा-पूर्व से लेकर दूसरी शताब्दी ईसा-पूर्व के मध्य तक का बताया जाता है. उस काल में भी बेहतरीन प्रबंधन का मॉडल था.या आज के शब्दों में कहें तो स्मार्ट सिटी यानि धौलावीरा का नगर प्रबंधन आज के स्मार्ट सिटी जैसे था.
अगर आप धोलावीरा के खामोश खंडहर के बीच खड़े होकर पूर्णिमा का चांद देखे तो यह जीवन में कभी नहीं भूलने वाला अनुभव देता है। धोलावीरा के खंडहर इतने खामोश की यहाँ की खामोशियाँ मन मे एक चित्र उकेरती है कि यहाँ पर स्थित मानव सभ्यता कैसे जीवन जीता रहा होगा। यहां पहुँचने पर आपको पुरानी बातें याद आने लगती है। आज से करीब 4500 साल पहले धोलावीरा एक स्मार्ट सिटी के रूप में आबाद था जिसमें शासक, कारोबारी, प्रशासन, इंजीनियर, मिस्त्री मौजूद थे। यहां सार्वजनिक कार्यक्रम होते थे और भीड़भाड़ बड़ा बाजार था।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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