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एक दशक बाद भी यहाँ नही पहुँचा विकास

 

 

दशकों बाद भी यहाँ नही पहुँचा विकास

●शासकीय योजनाओं के लाभ देने के वास्ते माँगते हैं पैसे*

●एक वर्ष से नही मिला राशन,नालों को पार कर जाते हैं ग्राम पँचायत अन्य कार्यो के लिए

●100 से ऊपर घरों को पानी के लिए तकना पड़ता है नाले की राह

●घर बैठे ही सचिव की लग रही हाजिरी

●सीईओ को तो परवाह ही नही

शहडोल।।

विकास की बागडोर और विकास का ढोल पीटने वाले कभी ग्रामीण अंचलों में जाकर झाँक ले कि वास्तव में वहाँ का एक आदिवासी समूह कैसा जीवन व्यतीत कर रहा है शहरों में पोस्टर लगवाने और सड़क पर नारे लगाने मात्र से विकास नही हो जाता है या यूं कहें कि विकास का प्रचार से ज्यादा प्रसार किया जाता है।
ऐसा ही एक मामला जनपद बुढ़ार अन्तर्गत ग्राम पंचायत कुड़ेली का है जहाँ बुढ़ार में निवासरत सचिव घर बैठे ही चाकरी कर रहे हैं तो रोजगार सहायक की कमी मोबालाइजर की मौजूदगी कर देती है शर्म करने की बात है कि वहाँ के ग्रामीणों ने बताया कि उनसे शासकीय योजनाओं व किसी कार्य के बदले पैसे की माँग की जाती है और न देने पर वह कार्य वर्षों किसी फाइल में पेंडेंसी के रूप में पड़ा रहता है।

एक वर्ष से नही मिला राशन पानी के लिए जाना पड़ता है नाला

ग्राम पँचायत जाने पर वहाँ खड़े ग्रामीणों ने सचिव का उदासीन रवैये को व्यक्त किया कि सचिव यहाँ आते ही नही है और उन्हें फोन लगाने पर कहते हैं मैं जनपद मीटिंग में हूँ इस कारण कई ग्रामीणों को आज एक वर्ष से राशन नही मिला। कुड़ेली गांव में रहने वाले एक बड़ा आदिवासी वर्ग ने सांसद-विधायकों पर तंज कसते हुए कहा कि वोट मांगने के अलावा सांसद-विधायक कभी गाँव की दहलीज नही कचरे हमे पानी पीने के लिए नाले जाकर पीना पड़ता है100 घरों के आसपास ग्रामीणों के पास न ही बिजली है और न ही पीने को पानी सड़क में जाते समय नालों को पार करके जाना पड़ता है।फिर भी हम विकास यात्रा का ढोल पीट रहे हैं।

विद्युत व्यवस्था ठप्प, बैटरी वाली बिजली डेड

ग्रामीणों ने बताया कि नवा गाँव मे लगभग 100 के आसपास घर हैं जहाँ लगभग 500 से ऊपर आबादी निवासरत हैं उनके पास न ही बिजली की व्यवस्था है और न ही उनके पास दैनिक जीवन के संसाधन इस माहौल के कारण बच्चों को शिक्षा जैसी मुख्य धारा से भी वंचित होना पड़ता है गांव वालों ने बताया कि पहले कुछ घरो को सौर लाइट दी गई थी किन्तु बैटरी डेड होने के कारण अब रौशनी की तलाश है और रोजना अंधेरे में ही जीवन बिताना पड़ता है बरसात में बड़े-बड़े कीड़े मकोड़े घरों में घुस जाते हैं फिर भी स्थानीय नेताओं को इन स्लम पर जीवन बसर करने वालों की सुध नही है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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