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दिल के अरमां आँसुओं में बह गए,हम जिलाध्यक्ष बनते बनते रह गए

दिल के अरमां आँसुओं में बह गए,हम जिलाध्यक्ष बनते बनते रह गए
दिल के अरमान आसुंओं में बह गए”निकाह फिल्म पर गाई गई यह गीत कमाल हसान की लिरिक्स पर सलमा आगा ने गाया था कैसे रोती हुई नम आँखों से अपनी बदनसीबी को कोसती है।इसके इतर भाजपा पुरुष वर्ग नेताओं का यही हाल है । पूरे सपने चूर-चूर हो गए जो 60 की पड़ाव में थे वो जिलाध्यक्ष से दूर हो गए और अब सिर्फ झूँठी दिलासा और मुस्कुराहट से सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि दिल के अरमान आसुंओ में बह गए ।उम्मीद करते हैं कि महिला राजनैतिक शून्यता वाले इस जिले में हजारों की तादाद में महिला नेत्री अब भाजपा का दामन थामेंगी और वह दिन दूर नही जब इतिहास के पन्नो में उनका नाम रजिया सुल्तान पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमती इंदिरा गाँधी, श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल और वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जैसे आएगा।

शहडोल।।विनय मिश्रा की कलम से 
वाकई जब घमण्ड सिर चढ़ता है तब अच्छे बुरे का ख्याल नहीं दिखता इसलिए जिलाध्यक्ष चुनने से पहले रायशुमारी की जो पटकथा रची गई दरअसल वह पूरी फिल्म पहले ही तैयार होकर दिल्ली प्रोडक्शन हाउस पर जा चुकी थी फिल्म के पूरे पटकथा में कहीं भी हीरो को उम्रदराज नही बताया गया और उम्रदराज किरदारों को दादा-दादी के रोल मिल सकते थे सिवाय इसके कुछ न था । पर जब प्रोडक्शन हाउस से फिल्म रिलीज हुई तो दादा-दादी को हीरो-हीरोइन के रोल मिल गए।खैर छोड़िए सबने हीरो हीरोइन को बधाई देकर फिल्म निर्देशक को धन्यवाद देकर कहा “अच्छा तो अब अलविदा कहते हैं”।
जिला अध्यक्ष के लिए भाजपा पार्टी ने गाइडलाइंस तय की थी कि 60 से ऊपर वालों को जिला अध्यक्ष नहीं बनाएंगे फिर अपने ही नियम के विपरीत भाजपा पार्टी का जाना यह बताता है कि आप पार्टी के लिए समर्पित हो या बहुत सक्रिय ,अगर अप्रोच रखते हो तब सब जायज है अन्यथा उठाते रहो झंडा बिछाते रहो दरी चटाई। नवनिर्वाचित जिलाध्यक्ष बनने के बाद कईयों के चेहरे से हवाइयाँ उड़ गई भाई साहब-भाई भाई साहेब में चर्चा होने लगी कि अगर 60+ही बनाना था तो हममें क्या बुराई थी “मनमानी” जी को यह मनमानी तो बिल्कुल भी रास नही आया होगा रही बात कैलाश तो उन्हें पितामह की तर्ज पर भाजपा ने सन्यास लेने की अंतरिम घोषणा अघोषित रूप से कर दी।राकेश,अमित, अनिल,संतोष,बिम्मू भैया के लिए अभी पार्टी के लिए बहुत अवसर है और किसी डायलॉग की तरह ग्रेट फ्यूचर है जैसा हाल है।भैया हमारा तो सीधे कहना है अब नही तो कब? क्या इतने दिनों की तपस्या का यही परिणाम मिलेगा??खैर एक बात और कि राजनीति के ये दिग्गज और पितामह कहलाने वाले कुछ दिग्गज भाजपा के लिए पितामह जरूर हैं पर हकीकत तो ये है कि पितामह पूरे हस्तिनापुर को समेटने की हिम्मत रखते थे। वो और बात है कि उन्हें इच्छा मृत्यु थी और अपनी मृत्यु स्वीकार कर लिए।
श्रीमती चपरा के जिलाध्यक्ष बनने पर हमें या दर्शक गण को बहुत फर्क तो नही पड़ता पर पार्टी के पुराने व कद्दावर पुरुष वर्ग के चेहरों में जरूर मायूसी आ गई वो और बात है कि कोई मन से तो कोई बेमन से तो कोई मुह पिचकाकर जबरन अध्यक्ष को बधाई की कतार में शामिल होकर फोटो खिंचाकर अपनी नकली इस्माइल से खुशी जाहिर किए। किन्तु यह चर्चे पूरे प्रदेश में चल रही है कि आखिर महिला जिलाध्यक्ष शहडोल जिले में क्यों?
कई अखबारों ने सुर्खियों में खबर लगाई कई माध्यम से शिकायत हुई फिर भी इतना रौब कि कोई क्या कर लेगा केंद्रीय स्तर के नेताओं का, फरमान है बनाओ मतलब बनाओ।
पार्टी की अपनी गाइडलाइन क्या है यह तो पार्टी ही जानें पर आम दर्शक और पाठकों को मण्डल अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष और अब प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में कोई विशेष दिलचस्पी नही दिख रही।बुढ़ार, सोहागपुर और ब्यौहारी में अब तक मण्डल अध्यक्ष नही बने और तो और अब प्रदेश अध्यक्ष का चयन भी होना है। फिलहाल संगठन तय कर ले कि कहीं मण्डल अध्यक्षो का दायित्व प्रदेश और जिले से बढ़कर तो नही है कि पार्टी के शीर्षस्तर के नेता धर्मसंकट में हैं।
जाते-जाते “दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गए कहना तो बनता है।”

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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