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रिजर्व फारेस्ट पर फिल्मकारों की धमक,बिना अनुमति के हो रहा वनों का दोहन

लाइट,‌कैमरा, एक्शन देखनें उमड़ा जनसैलाब, रिजर्व फारेस्ट में बिना अनुमति फिल्मकारों नें लगा लिया मेला …

वन अमले नें देर शाम की कार्यवाही पर नहीं हुई जप्ती

भुगतान के लिये भटकते रहे ग्रामीण… क्या स्क्रीन के उपयोग तक सीमित रहेगा आदिवासी बाहुल्य ईलाका

अनूपपुर।

 

वैसे तो जंगल का कानून अपने आप मे इतना सख्त कानून है यदि इसके दायरे में किसी तरह वन को या वन से जुड़े किसी भी प्राकृतिक संपदा को नुकसान पहुचाने की खबर सामने आती है तो उसे किसी भी हाल में बख्शा नही जाता,आज भी राजस्व माइनिंग से ज्यादा वन कानून से लोग भय खाते हैं।वन विभाग की ऐसी तमाम सराहनीय कार्यवाही समय समय पर देखी गई हैं जिसमे वन संपदा को नुकसान पहुंचाने वाले तमाम रसूख के बाद भी बख्शा नही गया।बात यदि शहडोल सम्भाग की की जाए तो, तो हमारा शहडोल सम्भाग इन्ही वन सम्पदाओं के कारण समूचे प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बना रखा है।कीमती वन संपदा का अकूत भंडार जहां इस क्षेत्र की मनोरमता को चार चांद लगाता है वहीं अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ व अमरकंटक क्षेत्र के वन सम्पदा हमेशा से ही जड़ी बूटियों वन्य प्राणियों व पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहे हैं। और यही कारण भी रहा है सरकार इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए हमेशा से ही ज्यादा ही सक्रिय रहा है लेकिन बीते कुछ दिनों से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी गतिविधयां सामने आई हैं जिसने न सिर्फ वन कानून का खुला उल्लंघन होता दिखाई दिया है बल्कि स्थानीय वन अमले के कार्यशैली पर भी सवाल खद्व किए हैं जिनके नाक के नीचे वन क्षेत्र में निरंतर संचालित गतिविधियों ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े किए हैं। हलाकि जब मौके की हकीकत चौथे स्तम्भ ने वरिष्ठों तक पहुचाई तो कार्यवाही का चाबुक तो चला लेकिन इस कार्यवाही से महज इतना ही सन्देश गया कि कोई विशेष गलती नही हुई है।

 

जानिए क्या है पूरा मामला..

दरअसल अनूपपुर जिले के कुछ रमणीय स्थानों को चिन्हित कर फ़िल्म निर्माता इस क्षेत्र से काफी प्रभावित हैं और इसी प्रभाव के चलते इस समूचे क्षेत्र में फिल्म मेकिंग को लेकर ऐसे तमाम स्थल हैं जहां का उपयोग कर दूर दराज के निर्माता निर्देशक लाखो करोड़ो की बचत करते हैं।आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में फिल्म मेकिंग को लेकर ऐसी तमाम संभावनाएं है जिसका उपयोग होता रहा है, कुछ ऐसा ही बीते कुछ दिनों से वन परिक्षेत्र अनूपपुर अंर्तगत छीरापटपर वन क्षेत्र में हो रहा है, जहां आरक्षित वन क्षेत्र में वन विभाग की अनुमति के बिना न सिर्फ हिन्दी फिल्म शहीद 76 की शूटिंग हो गई बल्कि रिजर्व वन क्षेत्र में बिना किसी वन अनुमति के फिल्म के निर्माता नें बकायदे फिल्म की स्क्रिप्ट पर एक मेला लगाकर हजारों की भीड़ एकत्र कर दी।

जानकारी के बाद पहुंचा वन अमला, नहीं हुई ठोस कार्यवाही

 

इस पूरे मामले की जानकारी जब वन अमले को मीडिया के माध्यम से हुई तो मौके पर कार्यवाही करनें वन अमला पहुंचा और स्थानीय स्तर पर तैनात बीड गार्ड सहित अन्य वन कर्मचारियों नें फिल्म की शूटिंग के उपयोग में लगे मेला को बंद कराया। जानकारी के मुताबिक मौके पर पहुंचे वन अमले नें बिना अनुमति रिजर्व वन क्षेत्र में लगे दुकानों की न ही जप्ती बनाई और न ही फिल्म मेकिंग में लगे दर्जनों वाहनों को जप्त किया। इतना ही नहीं वन अमले से फिल्म निर्माता का तालमेल इस स्तर का था कि घंटों की मोहलत देकर आरक्षित वन क्षेत्र से वाहनों को हटाया।‌

ग्रामीणों का हो रहा शोषण

गौर करनें वाली बात यह भी है कि एक तरफ जहां इस फिल्म के निर्माता आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में फिल्म बनाकर लाखों करोड़ों का व्यापार करनें की जुगत में हैं वहीं फिल्मी दुनियां की चमक धमक का झांसा देकर बडे पर्दे में इंट्री की आड़ में इनकी प्रतिभा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस फिल्म के निर्माता स्थानीय स्तर पर के कुछ दबंगो से सांठ गांठ कर ऐसे तमाम लोगों को अपनी फिल्म में रोल दिलानें के नाम पर जमकर भीड़ जुटाई। स्थानीय लोगों नें बताया कि उन्हें 3 सौ से 5 सौ रुपये देकर फिल्म निर्माता नें न अपनें सेट पर बुलाया और काम होनें के बाद उन्हें भुगतान तक नहीं किया गया।

एक्सीडेंट में टूट गया हाथ, ईलाज को मोहताज

इस फिल्म के निर्माता और उससे जुडे स्थानीय कार्यकर्ता जहां झीरम घाटे नक्सली हमले पर बनाई जा रही इस फिल्म में जहां विभिन्न रोलों में स्थानीय आदिवासी समुदाय को शामिल किये हुये हैं वहीं इन्हें न ही कार्य का श्रम भुगतान हो रहा है और न ही सुविधा के नाम पर पर किसी तरह बेहतर व्यवस्था मुहैया कराई जा रही है। बीते दिनों कुछ ऐसी ही घटना सामनें आई जिसमें ग्राम औढेरा के रहनें वाले अमर सिंह नामक एक व्यक्ति इसका शिकार हुआ। पीडित अमर सिंह नें बताया कि उसे व उसके कुछ साथियों को फिल्म में रोल दिये जानें के लिये सेट पर बुलाया गया, जिसके लिये बकासदे श्रम भुगतान की बात भी हुई। लेकिन उन्हें लानें ले जानें के लिये मालवाहक वाहन को भेजा गया, वह व उसके पूरे साथी पूरी रात सेट पर कार्य किये और जब मालवाहक वाहन द्वारा उन्हें पहुंचाया जा रहा था तो वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया, वाहन में सवाल कई लोगों को मामूली चोटें भी आई लेकिन उनका हांथ बुरी तरह टूट गया। ईलाज के नाम पर शासकीय चिकित्सालय में मरहम पट्टी का कोरम पूरा कर दिया गया, लेकिन न ही उन्हें श्रम भुगतान प्राप्त हुआ न ही और कोई सुविधा मुहैया कराई गई। अमर नें बताया कि इस घटना से उसके परिवार का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है, और उन्हें तमाम आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ेगा।

 

 

मामा – भांजे की जोडी कर रही खेल

इस फिल्म निर्माण से जुडे सूत्र बताते हैं कि करोड़ों के बजट से बन रही इस फिल्म की शूटिंग अनूपपर व शहडोल जिले के तमाम ईलाकों में की जानी है। जिसमें अनूपपुर जिले के इस फिल्म के निर्माता द्वारा अनुमति प्राप्त की गई है लेकिन शहडोल जिले से अब तक कोई अनुमति नहीं मिली है। लेकिन इस फिल्म के सह निर्माता अंकित जयसवाल व अपनें एक स्थानीय सहयोगी के साथ मिलकर अपनें प्रभाव के बल पर खुल कर नियमों कि धज्जियां उड़ा रहे हैं। जानकारों नें बताया कि इस फिल्म में ऐसे तमाम स्थानीय कलाकारों सहित वाहनों व अन्य श्रमिकों को शामिल को शामिल किता गया है लेकिन उन्हें अब तक भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है जिससे असंतोष की स्थितियां भी निर्मित हो रही है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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