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आरटीआई कानूनों को रौंदती इंदिरा गाँधी विश्वविद्यालय

 

 

 

आईजीएनटीयू, आरटीआई को अड़चन मान रही है।

( छात्रों को अपनी उत्तर पुस्तिका मांगना पड़ा मंहगा )

( झूठी शिकायत करने पर आमादा विश्वविद्यालय प्रबंधन )

अनूपपुर ।।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (आईजीएनटीयू) अमरकंटक में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 और आवेदकों को मनगढ़ंत जवाब दिए जाने का गंभीर उल्लंघन सामने आया है, धारा 4 जिसके तहत प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने कार्यों, निर्णय प्रक्रियाओं, बजट और व्यय से जुड़ी जानकारियां स्वेच्छा से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराना अनिवार्य है। किंतु विश्वविद्यालय द्वारा न तो अपनी वेबसाइट पर अद्यतन सूचनाएं अपलोड की जा रही हैं और न ही समितियों के गठन, भर्ती प्रक्रिया, पर्चेज कमेटी के निर्णयों, या अन्य प्रशासनिक गतिविधियों से संबंधित जानकारी पूर्ण पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त, छात्र और शोधार्थियों द्वारा मांगी गई आरटीआई सूचनाएं या तो गोपनीय बताकर रोकी जा रही हैं या जानबूझकर लंबित रखी जा रही हैं, जिससे विश्वविद्यालय की जवाबदेही और पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं, वर्तमान में प्रभारी कुलपति और उनके दो खासमखास प्रोफेसर एग्जीक्यूटिव काउंसिल की अनुमति के लिए दिल्ली दौड़ लगाने में व्यस्त हैं ताकि अनुमति मिलते ही मनमानी का दायरा बढ़ा के विश्वविद्यालय की अमानत में ख़यानत की जा सके, सीसी टीव्ही कैमरे की खरीद आदि में भी गड़बड़ियों की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है।

(भ्रष्टाचार छुपाने आधिकारिक चुप्पियों का सहारा)

विश्वविद्यालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी को भेजे गए कुछ आरटीआई आवेदनों में वर्ष 2020 से 2025 के बीच विश्वविद्यालय की पर्चेज कमेटी की बैठकों, खर्चों के ब्योरे, डॉ. अम्बेडकर चेयर के वित्तीय उपयोग, तथा आरईटी- 2024–25 परीक्षा की कार्यप्रणाली से जुड़ी कई सूचनाएं मांगी गई थीं। साथ ही आरईटी 2016 से 18 तक के बीच गोवा पड़जी मे बनाए गए परीक्षा केंद्र और परीक्षक की जानकारी चाही गई। परंतु नियमानुसार 30 दिन के भीतर सूचना देने के बजाय विश्वविद्यालय प्रशासन ने सभी जानकारियों को गोपनीय बता के सूचना देने से मना कर दिया जो कि आरटीआई अधिनियमों के पूरी तरह विपरीत है।

(आनन-फानन में गठित की गई कमेटी)

सूत्रों की मानें तो पूर्व छात्र रवि त्रिपाठी, सहित तमाम छात्रों के आरटीआई आवेदन, प्रधानमंत्री कार्यालय मे की गई शिकायतों आदि से विश्वविद्यालय प्रशासन का वह तबका जिसकी स्पष्ट संलिप्तता आरईटी 2024-25 के फर्जीवाड़े, पर्चेज कमेटी के संदिग्ध खरीद-फरोख्त, अंबेडकर चेयर आदि जैसे मामले के निष्पक्ष जांच से लगभग तय है कि फंस जाएंगे! ऐसे सभी संलिप्त लोगों ने आनन-फानन मे एक कमेटी बना के मामले से अंजान एक महिला डीन से जबरदस्ती शिकायत दिलाए हैं कि विश्वविद्यालय की छवि धूमिल की जा रही है, जबकि शिकायत में छात्रों का साफ कहना है कि निष्पक्ष जांच करी जाए, जिस पर विश्वविद्यालय प्रबंधन आनाकानी कर रहा है, निष्पक्ष पारदर्शी जांच के नाम से प्रभारी कुलपति, छात्र कल्याण अधिष्ठाता, आरईटी समन्वयक सहित सभी का गला सूख जाता है।
छात्रों ने एक-एक कर के सभी काग़ज़ पब्लिक डोमेन में सभी के लिए उपलब्ध करा दिएं, तब आरईटी समन्वयक और छात्र कल्याण अधिष्ठाता के अप्रत्यक्ष संरक्षण में अनूपपुर पुलिस अधीक्षक के पास फर्जी शिकायत कराने की योजना बनाई गई है। लेकिन छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन की ऐसी हरकतों के संबंध में साक्ष्य सहित पहले पुलिस महानिदेशक मध्यप्रदेश और पुलिस कमिश्नर शहडोल को सूचनार्थ पत्र प्रेषित कर दिया था, बीते दिनों पुलिस अधीक्षक अनूपपुर को भी साक्ष्य सहित पत्र प्रेषित कर दिए गए थें।
आरईटी 2024-25 के संबंध मे छात्रों के पास करीब 20-25 ऐसे नामों की सूची है जो आरईटी समन्वयक और छात्र कल्याण अधिष्ठाता के करीबी हैं वहीं कुछ प्रोफेसर्स के नजदीकी रिश्तेदार हैं! इन्ही सब की जांच से बचने के लिए फर्जी स्तरहीन शिकायत का प्रपंच किया जा रहा है।

(आरटीआई की धारा 4 का भी उल्लंघन)

ऐसा आज से नहीं वर्षों से चल रहा है, हाल यह हैं की विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट जो की आरटीआई की धारा 4 के अंतर्गत विश्वविद्यालय प्रबंधन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में आती है, उसमे भी भ्रमित, झूठी, अप्रमाणित और पूरानी जानकारी अपलोड कर के रखी जाती है। ताकि छात्रों और अभिभावकों के ज्यादा से ज्यादा भ्रम की स्थिति बनी रहे, वें परेशान होते रहें।आवेदनों पर प्रतिक्रिया शून्य और आरटीआई की धारा 8जे आदि का दुरुपयोग कर के आवेदन को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की जाती है

(सूचना की जगह सिफारिशें और दबाव)

सूत्रों की मानें तो आरटीआई आवेदकों को अक्सर विभागीय कर्मचारियों या ‘मध्यस्थों’ के माध्यम से यह सुझाव दिया जाता है कि वे अपना आवेदन वापस लें या मामले को ‘शांत’ कर लें। आवेदक पर व्यक्तिगत स्तर पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने और कथित तौर पर सेटलमेंट के सुझाव तक दिए जाते हैं, जो न केवल आरटीआई अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि संगठित प्रशासनिक भ्रष्टाचार का संकेत भी है।

(10 वर्षों से पदस्थ अधिकारी और बढ़ती संपत्ति)

विश्वविद्यालय में कुछ अधिकारी एवं विभाग प्रमुख ऐसे हैं जो एक ही जगह पर वर्षों से जमे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार, इन पदस्थ अधिकारियों की व्यक्तिगत संपत्ति में अचानक और असामान्य वृद्धि देखी गई है। जमीन, मकान, वाहन और अन्य चल-अचल संपत्ति की स्थिति अब करोड़ों रुपये के पार पहुंचने का अनुमान है, यह स्थिति संदेह उत्पन्न करती है और एक स्वतंत्र जांच का आधार बनती है।

(जवाबदेही तय हो, निष्पक्ष जांच की मांग)

यह स्पष्ट है कि विश्वविद्यालय के कुछ विभाग आरटीआई से बचने के लिए या तो रिकॉर्ड छिपा रहे हैं या फिर जवाब देने की स्थिति में ही नहीं हैं। ऐसे में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और सूचना आयोग को जल्द से जल्द संज्ञान मे लेकर मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। साथ ही, वर्षों से जमे अधिकारियों के कार्यकाल, पदस्थापन और संपत्ति की उच्चस्तरीय जांच भी आवश्यकता है, क्योंकि विश्वविद्यालय की समितियों में करोड़ों रुपए का फंड आता है इनकी निकासी मनमाने तौर पर चलती रहती है, यहां कोई सुध लेने वाला नहीं होता, जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति और कुल संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया जा सकता है तो आईजीएनटीयू के मलाईदार कमेटियों के चेयरमैन, एवं सभी प्रोफेसर्स का क्यों नहीं किया जा सकता है।

(सभी आवेदन छात्रहित-जनहित के रहते हैं)

वहीं छात्र रवि त्रिपाठी सहित सभी छात्रों का कहना है कि आईजीएनटीयू के लोक सूचना विभाग में लगभग सभी आवेदन छात्रहित और जनहित के रहते हैं, लेकिन यहां लोक सूचना अधिकारी और छात्र कल्याण अधिष्ठाता की कार्यशैली छात्र विरोधी ज्ञात होती है।
आवेदनों पर प्रतिक्रिया शून्य और आरटीआई की धारा 8जे वन आदि का दुरुपयोग कर के आवेदन को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की जाती है।
ऐसे में संबंधित लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी की जिम्मेदारी बनती है कि आवेदक के हितार्थ आरटीआई कानून के दायरे में रहते हुए चाही गई सूचना संस्थान से उपलब्ध कराएं। यहां सब मिले हुए हैं और जो मिला नहीं है वो डरा हुआ है। नियम-कानून ताक पर हैं।

(इनका कहना है)

छात्रों से आवेदन प्राप्त होने के बाद संबंधित विभागों से सूचना मंगाया गया है, वें समय पर या नियमानुसार सूचना नहीं देते इसमें मै कुछ नहीं कर सकता, आवेदक आगे अपीलीय प्रकिया करे‌ं।

प्रो. आलोक पण्डया
(प्रथम अपीलीय प्राधिकारी
आईजीएनटीयू अमरकंटक)

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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