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फड़ो में बंटे कांग्रेसियों में जिलाध्यक्ष बनने की होड़..कौन होगा काँग्रेस जिलाध्यक्ष..?

 

 

कभी पंजा मात्र कह देने से मतदाताओं के रगों में उबाल आने वाले आज उस पंजा की स्थिति ऐसी हो गई है कि पंजा तो है पर पंजा को जीवित रखने वाले उंगलियों में आपसी मतभेद है।अंगूठा कुछ और करना चाहता है और कनिष्ठिका यानि अपने भाषा मे छिंगी कुछ और।
हमने उंगलियों का हवाला इसलिए भी दिया कि आप समझ जाइए की जब हाँथ की उंगलियों में विभेद हो सकता है तो राजनीति और राजनीतिक लोगों में क्यों नही।
बात प्रदेश कांग्रेस की ,की जाए तो पाँच वर्ष पहले सरकार बनाई गई पंजा सरकार अस्त-व्यस्त हो गई महाराजा साहब से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ,पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ये उंगलियों की तरह छिन्न-भिन्न हो गए जो हाँथ में एक दूसरे से बंधे तो है पर सबके अपने अलग सोंच और कार्यशैली है।हाल ही में चली चुनावी पर्यवेक्षण ने यह तय कर दिया है कि अबकी बार पार्टी कुछ विशेष करने जा रही है।विधानसभा में आधा सीट और लोकसभा में गोला पाने वाली कांग्रेस को अब जाकर समझ आया कि पार्टी को किस तरह के कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है।अब शहडोल यानि विराटधरा कि बात करते हैं जहाँ एक दशक से कांग्रेस का बेड़ा गर्क हो रहा है और पार्टी के राजनीतिक पितामह कहलाने वाले लोग कुरुक्षेत्र के इस युद्ध मे पटखनी ही खाते रहे हैं।सवाल है कि पार्टी घरों की वातानुकूलित क्षेत्रो से चलती है कि धूप में एड़ियाँ और चप्पल घिसकर,तो शायद आपको इस प्रश्न का उत्तर खुद से तर्क करने पर मिल जाएगा।

शहडोल।।

पार्टी को मजबूत दिशा में ले जाने के लिए कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी से ज्यादा मेहनत शायद उनके जमीनी कार्यकर्ता नही कर रहे,जिला और ब्लाक स्तर पर बैठे लोग चुनाव आते ही सीना उठाकर और भृकुटि तानकर प्रचार करने निकल पड़ते हैं जबकि इनका चुनाव से पूर्व कांग्रेस के कार्यक्रम और आयोजनों के पाँच वर्ष के ग्राफ देखें तो शायद इन्हें पास करना अपने आप मे बेईमानी होगी।
राहुल गांधी के भोपाल दौरे के बाद शहडोल जिले में बारिश में भी सियासी पारा बढ़ा हुआ है
राजधानी से पर्यवेक्षक के रूप में शहडोल आये विवेक बंसल और अन्य जिलों के सहयोगियों ने कांग्रेस में एक बार फिर से मंथन और सुगबुगाहट का बाजार गर्म कर दिया है।जिला मुख्यालय में सीमित क्षेत्रों और सोशल मीडिया में सक्रिय रहने वाले लोग अब अपने आपको जिलाध्यक्ष की प्रतिस्पर्धा में आंक रहे हैं।खैर राहुल गांधी तो नही पर भोपाल मुख्यालय से एक सूची निकालकर यह जरूर देखना चाहिए कि लोकसभा और विधानसभा से लेकर पालिका और पंचायत चुनावों में कांग्रेस के इन पितामहों के क्या रिजल्ट रहे हैं।

शुरू हुई रायशुमारी और सर्वे….

कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्ष के चयन के लिए कांग्रेस भवन शहडोल से लेकर विभिन्न कस्बों में बैठकों का आयोजन हुआ पर परिणाम फिर वही पुराने ढर्रे पर पुराने नामों पर सिमट कर रह गई यानी इस बैठक को बैठक न मानकर महज औपचारिकता कहें तो शायद अतिश्योक्ति नही होगी। सूत्र बताते हैं कि सीधी चुरहट क्षेत्र के कद्दावर नेता अजय सिंह राहुल से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और जीतू पटवारी में आज भी लॉबिंग है और पुराना कांग्रेस अब इनके बीच अपने अस्तित्व को तलाश रहा है।

मुख्यालय से लेकर ब्लाक तक फड़ो मे विभाजित है आज की कांग्रेस..

दो दशकों से हार का रिकॉर्ड बनाने वाले कांग्रेसियों में आपसी फूट और गुटबाजी इस कदर हावी है यह मुख्यालय ही नही बल्कि ब्लाक और ब्लाक से ग्रामों तक चर्चित है।एसी कमरे से गली की राजनीति चलाने वाले चुनाव आते ही इस कदर सक्रिय होते हैं मानो शत-प्रतिशत परिणाम कांग्रेस के खेमें में जाएगा खेमें की बात से याद आया कि वर्तमान अध्यक्ष से लेकर पूर्व जिलाध्यक्ष के अपने-अपने खेमे हैं किसी का सीमा क्षेत्र लकड़ी टाल तो किसी ने अपने सोहागपुर ब्लाक को ही संगठित नही कर पाया यही नही चुनावों में कभी खुद को पार्टी से अलग कर लेने वाले कांग्रेसी नेता रविंद्र तिवारी का साँथ न सिर्फ वर्तमान अध्यक्ष बल्कि प्रदेश के दिग्गज नेताओं ने दबे पाँव सहयोग किया।
युवा कांग्रेस की फूट और खेमा कहाँ व किसके साँथ खड़ी है यह पूरा जिला मुख्यालय जानता है लकड़ी टाल से यूथ कांग्रेस और छात्र संगठन के पदाधिकारी जहां झण्डा उठाते हैं, वहीं जयस्तंभ पर सुफियान, अनुपम गौतम के अपने अलग वजूद और गुट हैं जो लगभग किसी खेमे में शामिल नही है यानि इनका अपना एक खुद का खेमा है।फिलहाल मुख्यालय से लकड़ी टाल से सियासत शुरू और खत्म करने वाले अजय अवस्थी का नाम भोपाल मुख्यालय में आज नही बल्कि वर्तमान जिलाध्यक्ष के उत्तराधिकारी के रूप में बीते कुछ वर्षों से चल रहा है।

कोयलांचल में सियायत व सियासी लोग…

जैतपुर विधानसभा क्षेत्र में मुट्ठी भर नामों के बीच सिमटने वाली कांग्रेस का वजूद पालिका से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव ने दिखा दिया है हलाकि ऐसा नही है कि कुछ कांग्रेसी ऐसे भी हैं जो आज भी कांग्रेस के लिए पसीना बहाने में गुरेज नहीं करते। कांग्रेसियों की आपसी फूट किसी से छिपा नही है सब अपने अपने तरकश में तीर ढूढ़ने की फिराक में है।जिन दावों के बीच कोयलांचल से जिलाध्यक्ष तराशने की बात हो रही है उनमें से एक आध नाम ही काबिल और योग्य दावेदारों में आ रहा है हलाकि पार्टी नाम को दरकिनार करे और राहुल गांधी की तर्ज पर तरजीह दी जाए तो विधानसभा और लोकसभा के आँकड़े और जमीन से जुड़े कर्मठ कार्यकर्ताओ को वरीयता दी जा सकती है।
नगरपालिका चुनाव में हुनमान खंडेलवाल का खेला काँग्रेस को फड़ में बाँट दिया तो पहले से बंटा फड़ कांग्रेस को गली पर लाकर खड़ा कर दिया।
जैतपुर विधानसभा का केन्द्र और शहडोल जिला का ह्रदय कहलाने वाले इस कोयलांचल में भाजपा स्लीपर सेलों की कमी नही है।

Divya Kirti
Author: Divya Kirti

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